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निवेदन
मैंने श्रीमत्स्वामि दयानन्दसरस्वतीजीका जो कुछ चर्चा देश देशान्तरों में सुना मन में आया कि जैसे किसी समय में विष्णु भगवान् ने वेदोद्धार किया बतलाते हैं कदाचित् फिर भी इस कलिकाल में उसी लिये दयानन्द जी ने अवतार लियाहो देव संयोग से एक दिन में किसी मेम (१) और साहिव के देखने को गया था तो वहां उस बारा में पहले दयानन्दजी महाराजही का दर्शन हुआ मैंने जिज्ञासा की कुछ उपदेश चाहा प्रश्नोत्तर पूरे नहीं भये साहिब आगये और और बातें होनेलगी मैं घर आया पर जितना महाराजजी के मुखारविन्द से सुना था बड़े सन्देहका कारण हुआ निवृत्यर्थ पत्रलिखा महाराज जी ने कृपा करके उत्तर दिया उसे देख मेरा सन्देह और भी बढ़ा महाराजजीके लिखने अनुसार ऋग्वे. दादि भाष्य भूमिका मँगा के पृष्ठ ६ से ८८ तक देखा विचित्र लीला दिखाई दी आधे आधे बचन जो अपने अनुकल पाये ग्रहण किये हैं और शेपार्धका जो प्रतिकूल पाये परित्याग उन आधे अनुकूल में भी जो कोई शब्द अपने भावसे विरुद्ध देखे उनके अर्थ पलटदिये मनमाने लगालिये घबराया कि छापेकी अशु(१) जगन् विख्यान मादम ब्लवनम्की और कनन पोल्काट ।।
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