Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

View full book text
Previous | Next

Page 160
________________ ( ५३ ) बुद्ध जीवन सम्बम्धी घटनाओं के वन में कुछ न पुष गड़ब, अवश्य ; परन्तु जहां उनकी मृत्यु हुई उसके विषय में सब एक मत हैं। सब कुशीनगर में उनका देहान्त होना बताते हैं । यह नगर सी नाम के राज्य का राज. स्थान था। इसमें कोई संशय नहीं कि यह प्रसनजीत के कौशल का एक भाग होगा। इस समय बुद्ध को घायु ८० वर्ष की ची। वे मगध की राजधानी से राजमह को लौटे थे और अपने चचेरे भाई प्रानन्द और बहुत से लोगों के साच प्रारहे थे। गङ्गा के दक्षिीय किनारे पर पहुंच, पार उतरने के पहले, एक वर्गाकार बड़े पत्थर के ऊपर सड़े हुए और बड़े प्यार के साथ अपने साथियों की ओर प्रेम की दूटिपात कर बोले "यही सब से अंतिम समय है जो राजगृह और प्रजासनम् के देखने का है। अब मैं इन स्थानों को फिर कमी नहीं देखूमा ।" महापार उतरने के उपरान्त वह वैशाली नगरी में गये और वहां भी उन्हों ने वेही विदाई मर्मस्पशी वास्प कहे। यहां पर कई मनुष्य उनके अनुयायो माधु होगये। हम में सब से अन्तिम सन्यासी सुभद्र नाम का पा । कुशीनगर पाम के साथ मील उत्तर पश्चिम, अधिरावती नदी के पास, मरल देश था । वहां पर वे यकायक मूछिन गये । शास दा की एक कुख के नीचे उनकी श्रेष्ठमात्मा ने उनका साथ दिया, या जैसा बुद्ध पुराण कहते हैं, वह निर्वास के द्वार में प्रविष्ट होगये। मनसङ्ग ने चार साल के पेड़ देसे थे। वे चारों एक सी उंचाई थे। कहा जाता था, कि बुद्ध ने इन के नीचे अपना प्राय दोहा था । लङ्का का तिहास कहता है कि अजातशत्रु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178