Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

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Page 167
________________ दिया। अपने धर्म का खब प्रचार करने के लिये बुद्ध ने जा व्याख्यान दिये थे उन के शिष्यों मे उनको उस समय की प्रचलित भाषा [ प लं ] में लेखाद्ध किया । बरनफ (Burnough) कहता है, कि बौद्ध सत्रों की लेखन प्रणाली बड़ी वाहियात है और उनका साहित्य भी ज । हुला नहीं है, क्योंकि बौद्धों को किसी तरह की भी कला में निपुणता प्राह न थो, विरक्त ही ठहरे। ___ङ्का, ब्रह्मा, पीगू, स्याम और चीन में जो चार " सत्य " कहे जाते हैं उनका बड़ा भारी मादर है । इनको सम्पूर्ण बौद्ध जानते हैं। ये " भार्याणि सत्यानि" कहलाते हैं। उनका व्यौरा इस प्रकार है :___ पहला सत्य, दुःख को वह दशा, जो मानव जाति को एक या दूसरे रूप में सताती है, अवश्यम्भावी है। चाहे मनुष्य की कुछ भी स्थिति क्यों न हो। ( यह " सत्य" बिल्कुल सत्य है, परन्तु इस से छुटकारा पाने के उपाय उतने ही अधरे हैं जितना यह मत्य है । ) दूसरा सत्य, इन्द्रियों को वश में न रखने से, पापपूर्ण वासनाओं में लिप्त रहने से, सब दुःख हे।ते हैं । [इस में कोई सन्देह नहीं।] : तीसरा सत्य, उपर्युक्त दोनों क्लेशों की सान्त्वना के लिये यह तीसरा सत्य है । निर्वाण, जो कि मनुष्यमात्र के प्रयत्रों का सार है, इन क्लेशों से बचा सकता है । चौथा सत्य, केशों के बचाने वाला मार्ग है। यह मार्ग, वही निर्वाण है। इस केदूसरे शब्दों में मोक्ष का उपाय भी कह सकते हैं। फिर निर्वाण पाने के लिये “ नाठ श्रेष्ठ उपाय" हैं। बे इस प्रकार हैं: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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