Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

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Page 168
________________ पहला है, मक्ति और धर्मदृढ़ता; दूसरा है, सत्यपूर्व न्याय जिस से संशय दूर हो जाते हैं; तीसरा, सत्य संभाषण, अर्थात् झूठ का सर्वथा त्याग और प्रत्येक बात में सत्य ही बोलना और उसी के अनुसार करना; चौघा, मत्यपूर्ण उद्देश्य, अर्थात् सदा खरी ईमानदारी का व्यवहार; पांचवां, जीवन का न्यायपूर्ण पोषर अर्थात् दोषरहित और पापहीन कामों से-सन्यासी होकर-जं वन निर्वाह करना; छठवां धर्म में ठीक २ और पूरा मन लगाना; सातवां सच्ची स्मृति का रखना, अर्थात् वे बातें ना हो चुकी हैं, उनका ठोक २ याद रखना; पाठवां और अन्तिम है, सत्यपूर्ण ध्यान ( इसे बौद्ध जोग भावना कहते हैं ) जिस से मनुष्य इसी लोक में शान्ति, नो निर्वास के बराबर के दर्जे की है, पासकता है। उपर्युक्त चार "मार्याधि सत्यानि" बुद्ध को बोधिमराह पर बोष इतके नीचे प्राप्त एघे । ये सिहान्त, बुद्ध ने पहले काशी में फैलाये थे, और फिर कौशल के अधकचरे परिश्तों को हराकर उन्होंने ये सिद्धान्त सम्पूर्ण देशों । लाये। इन चार सत्यों को इस तरह भी दुसरा सकते दुल का अस्तित्व, दुःख का कारण, दुःख का नाच, और दुःखनाश करने का उपाय । एक तरह से ये " पत्य" ही बौद्ध धर्म की नींव हैं। बौद्ध सन्त इन को बड़े प्रेम के साथ दुहराते हैं और ये लगभग बुद्ध की सम्पूर्ण मूर्तियों की सुदे हुए भी पाये जाते हैं। इन "त्यों " और " उपायों के बाद पुष उपदेशपूर्व सिद्धान्त पास भी है। ये बहुत ही सीधे राधे ही में एक भाग पांच रिशाम्तों का है और दूसरा मी पांच का। इस तरह पम मिलाकर, ये दस होते। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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