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(१९) की सा-मारी भारी गिरी, परन्तु मरे हुए बच्चे को कोई बच्चा न कर सका। अन्त में एक बुद्धिमान् पुरुष ने उसका इत्तान्त सुनकर. अपने मन में सोचा "अफसोस ! यह कृष्णा गौतमी मृत्यु का तत्व नहीं समझती। मैं इसे सान्त्वना दूंगा । " उस ने उस लड़की से कहा, “ मेरी प्यारी बेटी, मुके कोई ऐसी दवा नहीं मालूम जिस से तेरा पुत्र पुनः जीवन पा सके, परन्तु मैं एक ऐसे पुरुष को जानता हूं, जो तुझे दवा दे सकता है।" "कृपा कर
बताइये बह पौन, बताइये बताइये" लड़कीने कहा। उमने जवाब दिया " उस का नाम बुद्ध है।" लड़की दौड़ी दौड़ी बुद्ध के पास पहुंची । सादर प्रणाम कर के उसने बुद्ध पर अपना अभिप्राय प्रकट किया। उसने उससे कहा, "हां मैं एक ऐसी दवा जामता हूं। मुझे तुम मुही भर सरसों लादो।" लड़की वहां से भागी। पर बुद्ध ने रोकर उससे कहा, "इस बात का ध्यान रखियो कि जिस पर में न तो कोई लड़का मरा हो, शीर न पति, माता, पिता या दास मरा है, वहीं से सरसों लाइयो।"
"बहुत अच्छा" कह कर लड़की वहां से जल्दी जल्दी नानी । अपने मरे हुए बच्चे को भी वह पीठ पर लादे हुए किये जारही पा । पहले जिस से वह सरसों के बीज मां. गतो पर यह कहता कि ये रहे, ले जाओ। पर ज्यों ही वह पहली, कि काई-पति...दास इत्यादि-इस घर में मरा तो नहीं, सब उसे यही उत्तर मिलता, कि पति ...दाम में से कोई न कोई मर गया है। एक ने उत्तर दिवा, बाला, तुम यह कैसा अनोखा प्रन्न करती हो ? जीवित मनुष्य कम हैं, मरे हुए ज्यादा हैं।" अन्त में, म उसने किसी घर को मौत से बचा दुश्रा न देखा,
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