Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

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Page 173
________________ तब बुद्ध के पास लौट प्राई । बुद्ध ने उससे पूंजा " पा सरसों के बीज मिलगये " ( इस के पहले ही वह अपने मृत बच्चे को जङ्गल में रख पाई थी ) उसने उत्तर दिया मैं नहीं ला सकी, गांव के लोग कहते हैं कि जीते कम हैं, मरे अधिक हैं।" तब बुद्ध ने कहा, "तुमने सोचा था, कि केवल तुम्हीं ने अपना बालक खोया है, मृत्यु के नियम के अनुसार सब जीवोंके जीवन में स्थिरता नहीं है।" इस तरह महात्मा बुद्ध ने उस लड़की का अन्धकार दूर कर दिया, उसे सान्त्वना दी और वह उन की चेली हो गई। दूसरे प्रकार का एक दृष्टान्त यह है: पूर्ण नाम का एक धनी व्यापारी था। जिस समय वह अपने जहाज़ पर था, किसी ने उसे बुद्धका नवीन मत सुनाया । उसने तुरन्त ही इस नवीन मत को अङ्गीकार कर लिया, और त्यागी हे। कर, दूसरे लोगों को इसी मत में लाने के लिये वह भयानक लोगों में धार करने के लिये जाने की तय्यारी करने लगा । बुद्ध ने बहुत कुछ समझाया, परन्तु उसने एक न सुनी । वह अपने निश्चय पर दृढ़ रहा । दोनों में इस प्रकार बातें हुई: बुद्ध ने कहा, श्रोण प्रान्त के मनुष्य, जिनमें तुम जाकर बसना चाहते हो, क्रोधी, निर्दय, वासनालिप्त, भयानक और असभ्य हैं* । जब वे लोग तुम्हें दुष्टतापूर्ण, पाशविक, जङ्गली गालियों से भरी और असभ्य भाषा में सम्बोधन करेंगे, तब हे पूर्व तुम क्या करेंगे? पूर्व ने उत्तर दिया, "जब वे लोग मुझे कुवचनों से बोग पाम कल के मोहमन्द, बकाखेल प्रत्यादि पठानों के पूर्वजोंगे । उपर पिए दबाज भी न खागोम पाये जाते है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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