Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

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Page 174
________________ ( १३ ) भरी हुई माया में सम्बोधन करेंने तब में यह सोचलूंगा, किर प्राम्स के मनुष्य सचमुच बहे गले और सज्जन हैं वो मुझे देखते ही चूंसा और पत्थर से मेरी खबर नहीं लेते।" पिर उन दोनों में यें। बात चीत हुई: "परन्तु यदि वे तुम्हें चूंसे और पत्थर ही मारतो?" " में उनको मला और सज्जन ही समझंगा, क्योंकि उन्हों ने मुझे लट्ठ या तलवार से तो न मारा। " परन्तु यदि वे तुम्हारे तलवार ही मारदें तम ?" "में नरें भला और बच्चन समझंगा, क्योंकि वे मेरी जाम तो छोड़ देंगे।" " परन्तु यदि वे तुम्हारी जान ही लेलें तब क्या. कराने!" ___ "पिर भी मैं उन्हें भला और सज्जन समझंगा, क्योंकि वे दुर्वासनामों से भरे मेरे शरीर को दुःखमय संसार से दूर कर देने।" "साधु ! पूर्व साधु ! तुम्हारा घेयं प्रशंसनीय है । तुम मोर प्रान्त में जाकर रहे, तुम्हारा उद्धार होगया है, अब तुम दूसरों का उद्वार करो ; तुम पार उतर चुके हो, दूसरों के पार उतरने में सहायता पहुंचामो ; तुम ने शान्ति पई, दूसरों को शान्ति पहुंचायो ; तुम पूर्व निर्वारपाचुके हो, दूमरों को भी उस मार्ग पर चलायो। स तरह उत्साहित होने पर पूर्वस कष्टसाध्य पान में निमगवा । बहा! धर्म प्रचार के काम में और अन्य बातों में भी भारतवासियों को दूरता और वीरता कैसी सम्भवलता के बाद दमदमाती है। हम तरह के शौर्य और पुरुषार्थ है बौद्धों ने पृथ्वी की भयानक से भी भयानक जातियां शीलसम्पन कर ली। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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