Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

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Page 175
________________ ( १४ ) महा सभ्य, जङ्गली और धर लोग भी दानशील, उदार और दयालु होगये हैं । मंगोलिया और लङ्का इस बात के उदाहरण हैं । धार्मिक भावेश के बौद्ध उपदेशकों के ऐसे असंख्य उदाहरण हैं। बुद्ध मरते मरते तक उपदेश करते रहे। जिस रात को उनके गौरवपूर्ण जीवन पर अन्तिम पर्दा गिरा एक तत्व. वेत्ता ब्राह्मण शास्त्रार्य करने पाया । उसकी बोली पहिचान कर, बुद्ध ने उससे कहा " यह समय शास्त्रार्थ करने का महीं है"। धर्म का एक ही मार्ग है । वह मार्ग मैं ने निश्चित कर दिया है। बहुतेरे उस के अनुयायी हो गये हैं। उन लोगों ने वामना, अहङ्कार, और क्रोथ को जीत लिया है, इन के जीतने से वे अज्ञान, शङ्का, और असत्य पर भी विजय पा चुके हैं । वे लोग विश्व - दया के प्रशान्त मार्ग पर जा चुके हैं। उन लोगों ने इसो जीवन में निर्वाण पा लिया है। मेरे धर्म में १२ बड़े २ शिष्य हैं । वे लोग संसार भर को दीक्षित कर रहे हैं । उनके बराबर जामो दूसरे धर्म में कोई नहीं । हे सुभद्र ! मैं उन बातों को नहीं कहता जिनका मुझे अनुभव नहीं । मेरी २९ वर्ष की अवस्था थी जब से मैं पूर्ण ज्ञान के पाने के लिये उद्योग कर रहा हूं। यही पूर्ण ज्ञान निर्वाण का साधन है ।" इस के बाद उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, "प्रियवर्ग ! जिस कारण से जीवन होता है, उसी से तीणता और मृत्यु भी होती है। इस को कभी मत . भूलना । इस सत्य को सदा मन में रखना । मैं ने तुम्हें यही कहने को बुलाया था।" ये बुद्ध के अन्तिम शब्द थे । इस के बाद उन का शरीरान्त हुना। . ॥ति ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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