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( ८ ) ईसाइयों ने अपश्य ही कुछ मदन बदल के बाप इन्हीं दसों को अपने यहां भो स्थान दिया है। इस से साफ सिद्ध हो जावेगा, कि कुछ परिवर्तन के साथ, ईसाई धर्म बौद्ध मत ही से गिकता है। केवल दो बातें परिवर्तन में भुला दी गई हैं। एक तो अहिंसा और द्वितीय पुनर्जन्म। अहिंसा विना जीवन निर्वाह कठिन समझा होगा और पुनर्जन्म का सिद्धान्त समझ में आया न होगा । बाबू हरिश्चन्द्र ने लिया है, कि भारत के उत्तर और पूर्वोत्तर देशों में गौतम को गोडमा कहते हैं। बिगड़ते २ गौरमा का अपभ्रंश गौडगवा । या यही शब्द बाइबिल का गौर (God) है? अस्तु, कुछ ही हो, यह निर्विवाद है, किशशोक के भेजे हुए उपदेशकों के उपदेश ईसा के समय में भी मित्र, बाबुल, बैक्ट्रिया, और एशिया माइनर में फैले हुए थे। उहाँ उपदेशों को-जो पुराने पड़गये थे-ईसा ने परिमान्जित कर लोगों में फैलाये होंगे । बहुत से ( बर्मनी के कई विद्वान् ) तो इस बात की भी शङ्का करने लगे हैं कि ईसा नाम: पुरुष इस संसार में कभी पैदा हुमा या महीमा । प्रस्तु, वे दस उपदेश बुद्ध के इस तरह पर ई-. पहले पांच ( इनका अवश्य ही पालन होना चाहिये )
(१) हत्या मत कर, [ईसाई केवल मनुष्य हत्या न करने को कहते हैं। ] (२) चोरी मत कर, (३) व्यभिचार मत कर, (४) झूठ मत बोल, (५) मद्य मत पी ।
दूसरे पांच ( ये ऐसे हैं, जो महत्व के होने पर भी, ज्यादा ध्यान से नहीं माने जाते)
(१) नियत समय के सिवाय कभी भोजन मत कर, (२) नाचना, गाना, सङ्गीत और नाट्याभिनय को देखने तक का निषेध, (३)नरत नरम बिकीनों [जिस में भाग
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