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जानकारी बढ़जाने से यहां शिल्प की खूब उकति हुई और यह देश धन भाग्य से परिपूर्ण हे । ने लगा । छाब भारतवर्ष - यद्यपि उसका उत्तरोत्तर पतन ही है। ता जाता था-संसार भर के सब देशों का सिरमौर है गया । प्राप कहते होंगे, कि बाबुल, मिश्र, यूनान, फ़ारस ( संस्कृत पारस ) और रोम देश भी तो भारत से कुछ कम सभ्य म घे । हम मानते हैं, कि सभ्य थे, परन्तु इस भारत के मुक़ाबले में कुछ भी न थे । याद रखिये कि जिस समय उपरे।क्त देश “सभ्य" कहलाते थे, उस समय भारत पतनमार्ग पर होने पर भी उन से ऊंचा था । यदि यूनान में अफ़लातून ( Plato प्लेटो ) हुआ तो भारत में उस से बढ़ कर कपिल हुए थे, यदि यूनान में अरस्तू ( Aristotle एरिस्टे|टिल ) हुआ, तो उसके गुरुतुल्य यहां वशिष्ठ हुए, यूनान में प्रसिद्ध इतिहासकार हेरोडोटस हुआ। तो उसको लज्जित करने वाले यहां कृष्णद्वैपायन व्यास हुए, यदि यूनान में महाबली हरक्यूलीज़ था तो उस से कई गुने बल वाले श्रमेोघ वीप्यंशाली भीमसेन, अर्जुन और हनुमान थे । चरक, सुश्रुत और वाग्भट्ट के वैद्यक की समता करना आज भी कठिन है । मिश्र के पिरामिड देखकर क्या कोई यहां के पहाड़ काट काट कर बनाये हुए विशाल, विचित्र, अनुपम और सुन्दर मन्दिर भल सकता है ? बाबुल का व्यवहार सदा भारत से रहा है । यहां के नक्काशी किये हुए पत्थर वहां की इमारतों में लगाये जाते थे । यहां के रेशमी और ज़री के वस्त्र बाबुल के तो क्या, सभ्य संसार के समस्त स्त्री पुरुष शौक़ के साथ पहनते थे । रोममें ग्लेडियेटर फ़ाइट (Gladiator fight) एक तरह की लड़ाई, जिसमें सिंह, भालू इत्यादि जङ्गली
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