Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

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Page 164
________________ बुद्ध की युक्ति बहुत प्रबल होती थीं, उनकी बुद्धिकशापता अपूर्व थी, उनके जान दो सामने बड़े २ विद्वानों को बुद्धि चकरा जाती थी, वे बहुत सी बातों के जानने वाले थे, उनके बर बर करुणा किसी में न रही होगी, वह सच्चे दिल से मानव जाति का उद्धार करना चाहते थे,वह जो कुछ कहते और करते थे, अपने अन्तःकरण से कहते और करते थे, परन्तु उन के विचारों की, उनके सिद्धान्तों की जड़ कच्ची थी। जिस नींव पर अपना धर्म खड़ा करना चाहते थे, वह नींव ही कच्ची थी । उन्हों ने संसार को अत्यन्त विरक्त भाव से देखा है । उन्हें संसार में दुःख के मा चे २ पहाड़ों के सिवाय और कुछ भी न दिखाई दिया। उनका सिद्धान्त था, कि दुनिया में सिवाय दुःख के सुख रत्ती भर पा, परमाणु भर भी नहीं । यह उन की बड़ी भारी भूल थी। निःसन्देह संमार में दुःख है, परन्तु जहां दु . वहां मुख ज़हर है। यदि घर ने संसार को केवल दुःखमय और पीड़ापूरित ही बनाया होता तो इसबा बनाना और न बनाना दोनों बराबर था। दुःख है परन्तु मुल भी है । यदि संसार में दुःख रे, तो उसे दूर करो, उस सेर कर और निराश होकर भागना कायरता का काम है। युद्ध के धर्म ने भारत को लाम भी पहुंचाया, और उस की हानि भी कुछ घोड़ी नहीं की। इस धर्म के साथ यहां वैद्यक विद्या, शिलालेख प्रणाली, और नये २ दर्शन शाखा के विचारों ने सूब उमति की । पूर्वी दुनिया ने भारत से धर्म के साथ सम्यता सीखी। जिन देशों ने भारत में उसका पैदा किया हुमा, यह नया मत सीसा, वे इसे परम पवित्र मानने लगे। भारत की इस तरह दूसरे देशों से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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