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उपसंहार।
महात्मा बुहरे जीवन-परिश की यदि कुछ बातें बोरी जावे तो यह पूर्व रहेगा। इस कारण इस महा बिद्वान् के चम्म सम्बन्धी विचारों की भी कुछ चर्चा परनामसरी।
शापमुनि तत्ववेत्ता थे, वपिनी हो सकते हैं, परन्तु हम कुछ और मान लेना भूल है। बुद्ध ने कभी अपने कोचर का अवतार नही कहा । सचमुच वह उस समय के बिगड़े हुए वैदिक धर्म का अचार मात्र परना चाहते थे, परन्तु परते २ उनके सिद्धान्त कुछ के कुछ हो गये। उस समय जाति विभाग को कठिनाइयां माह्य हो वहीं ची, ब्राला लोग नित श्रेती के लोगों को बिलकुल अन्धकार में रखेलने लगे थे, और उन के साथ कुछ २ निर्दयता का मी बर्ताव हो चला था । पम्ही कारणों है बुद्ध के इदय में अपूर्व दया का संचार सुधा । उन्होंने सचमुच संसारको पाप से बचाने की चेष्टा की । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये उन्हें ने भोग विलास दोहरा,पर द्वारोड़ा, और संसार मोड़ा। अहा, कैसा अपूर्व प्रात्मत्याग पा !
इसमें आई सन्देह नही, कि बुद्ध के बराबर वाग्मी महात्मा गाई कभी ना, नी, और न होगा। उनमें मोह लेने कीबो शक्ति पो, यह अनुतपूर्व घो। उन की वह स्व शक्ति को उपमा शङ्कराचार्य को पर, संसार में किसी से भी नहीं दी जासकती । जो लोग केवल उत्सुकतावश उनके व्याख्यान हमने जाते थे, जो लोग उनके विरुद्ध मनसूबे गांठकर उसके सामने पहुंचते थे, वे मी उनका धर्म अङ्गीकार कर लेते थे।
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