________________
( २ )
पहले बुद्ध का विचार वेदप्रचार हो का था, उन्हें ने अपने जन्म भर वेद के महत्व के विरुद्ध कोई बात नहीं कही । हाँ, धीरे २ उन के विचार बदलते गये । फिर तो वे वेद ही क्या, वेद के आधार ईश्वर को भी भूल गये । उन्होंने केवल असीम स्वावलम्ब का नमूना लोगों के सामने रख दिया। कहा, अपने हो बाहुबल से तुम भवसागर पार कर सकते हौ । बुद्ध ने स्वर्ग माना है, नरक माना है और सब माना है, केवल एक जगदाधार ईश्वर को ही वे भूल गये I
बुद्ध का उद्देश्य बहुत ही श्रेष्ठ, और लक्ष्य बहुत ही ऊंचा था, परन्तु जेा विषय उन्हें ने उनके सिद्ध होने के लिये चलाये, वे अन्त में चिरस्थ यो न ठहरे । यह बात ब्रह्मदेश, स्याम, जावा, चीन, तिब्बत, मङ्गोलिया और कई अंशों में जापान में भी प्रत्यक्ष दिखाई देती
। विना ईश्वर के अन्तःकरण के शान्ति नहीं मिलती । उस के विना यह चचल है। कर मटरगश्त लगाता रहता है । यही कारण है, कि उपर्युक्त देशों में बौद्ध धर्म - बुद्ध के निश्चित सिद्धान्त-- अपनी पहली हालत में नहीं हैं । बुद्ध ने मूर्तिपूजा के लिये कब कहा था ? परन्तु जितनी मूर्तिपूजा बौद्ध धर्मानुयायियों में होती है, उतनी किसी में नहीं । बुद्ध ने कब कहा, कि मैं किसी महाशक्ति का अवतार या स्वयं कोई महाशक्ति हूं ? - याद रखिये, बुद्ध ईश्वर को ज़रा भी न मानते थे । परन्तु फिर भी सम्पूर्ण बौद्ध बुद्ध बुद्ध रटा करते हैं। यह क्यों ? बुद्ध ने तो कभी इन बातों का उपदेश ही नहीं किया । बुद्ध के न कहने पर मी लोग मूर्तिपूजा करने लगे, और दूसरे रूप में ईश्वरवाद भी करने लगे ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com