________________
( ५२ ) से मारडाले जाते, परन्तु भारत में सब को अपने अपने विचार प्रकट करने की स्वाधनता थी, और इस पर भी ब्राह्मणों ने मारे घमगह के लापरवाही की, बस फिर पा था, बौद्ध धर्म को अच्छी बन पड़ो । प्रतिहार्य सूत्र नाम की एक कहानी की पुस्तक है । उस में प्रसन्नजीत के सन्मुख ब्राह्मणों और बौद्धों का जो शास्त्रार्थ हुमा चा, उसका वर्णन है । उस शास्त्रार्थ में ब्राह्मण हार गये थे। यह एक तरह का दङ्गल सा था। इस में राजा और प्रजा निबटेरा करने वाले बनाये गये थे। बस इम्हीं सब बातोंका उपरोक्त सूत्र में सम वेश है। इससे भी अधिक विचित्र कहानी में एक कथा लिखी है। वह इस प्रकार है:
भद्रङ्कर नाम का एक गांव था । वहां के नागरिकों से ब्राह्मणों ने वचन लेंलिया था, कि वे लोग बुद्ध को अपमे नगर में नहीं घुसने देंगे। परन्तु जब भागवत (बुद्ध) ने नगर में प्रवेश करना चाहातो एक ब्राह्मणी, जे। कपिलवस्तुको मिवासिनी थी, और भद्रङ्करमें व्याही थी, चुपकेसे रात को दीवार लांघ कर बुद्ध के पास पहुंची। वह उनके पैरों पर गिर पड़ी और नवीन धर्म को शिक्षा पाने को प्रार्थना करने लगी। उसका अनुकरण एक अत्यन्त धनी नागरिक ने, जिसका नाम मेन्धक था, किया। उसने सब लोगों को जोड़ कर व्य ख्यान दिये और सब को स्वतन्त्र कर्ता के लिये जीत लिया। यह ही क्यों और भी बड़े बड़े झगड़े हुए होंगे। फाहियान और ह्य नसङ्ग, जो कि बुद्ध के सहस्त्र वर्ष उपरत पाये, लिखते हैं कि लोगों ने बुद्ध के मार डालने का भी बहुत बार चेष्टा की थी परन्तु बद्ध इन सब प्रापत्तियों से बचते गये।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com