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ग्रह से और कुछ मूढ़ विश्वास से लिखी हुई मालूम होती हैं। हम यह नही कहते हैं कि लनङ्ग ने जो मारतवत्तान्त लिखा है, वह, सर्वथा ही चममूलक और असत्य है। सू नसङ्ग ने ब्राह्मण पण्डितों की हर जगह पुराई की है, और बौद्धों को प्रत्येक जगह प्रशंसा । बुद्ध के धर्म की जो उन्नति उस समय हुई, उसके तीन मुख्यकारण हैं। १-वेदों की संस्कृत समझना बहुत ही कठिन होगया था। २-छोटे अपढ़ लोग धार्मिक विषय में प्रत्येक बात के लिये ब्राह्मणों का मुंह ताका करते थे। ३-उन लोगों में सरलता और उदारता की जगह धीरे धीरे अकड़ और घमण्ड होता जाता था। लोग उनसे उकता चले थे । बुद्धने धर्म को सब के सम्मुख प्रकट किया । परन्तु ब्रालगों ने लापरवाही के कारण उस ओर ध्यान नहीं दिया । बुद्ध को राजाओं की रक्षा का सहारा घा, इससे उन्हें प्रजा का चित्त आकर्षण करने में कोई बाधा नहीं पड़ी, क्योंकि प्रजा राजा की प्रायः नकल करती है। बुद्ध का शील चरित्र बहुत बढ़ा चढ़ा था । उन के पवित्र गुणों और चित्ताकर्षक व्याख्यान ने बहुतों का रदय मोह लिया था । बुद्ध ने यह कभी नहीं कहा कि बौद्ध धर्म कोई नया धर्म है । उनकी बातों से प्रकट होता है कि वे केवल सुधारक थे, नवीन धर्म प्रचारक न थे परन्तु पीछे वे नवीन धर्म प्रचारक माने गये, यद्यपि उस समय ऐसा होने की बहुत कम सम्भावना थी । ब्रामण लोग बुद्ध के सिद्धान्तों को केवल दर्शन की एक नई परिपाटी मानते थे। वह श्रावागमन को मानते थे, केवल मेरा के मार्ग में कुछ थोड़ा सा अन्तर था।रको दर्शन की
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