Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

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Page 156
________________ उनले संग मेंजामिसे । अन्त में राजा ने अपने एक मन्त्री वो मेवा । इसका नाम चरक चा । दूसरे दूतों की तरह यह भी दौड हे।गया, परन्तु यह राजा के पास लौट कर गया, और बुद्ध ने माने का समाचार मुमाया । मालम होता है कि शुद्धोदन बुद्ध के माने की बाट म देख कर स्वयं ही उनके पास चले गये । युद्ध पिता से मिले, और चाहे दिनों में कपिलवस्तु चले गये । शुद्धोदन की देखा देखी अन्य शाप भी बौद्ध होगये । सचमुच उनमें से बहु. तेरों ने बौद्धों पार्मिक वस्त भी पहिन लिये । बुद्ध की तीन पविमों मोपा, याचरा और उत्पलवर्ग मे, और अन्य बहुत सी खिपों ने बौद्ध साध्वी होना स्वीकार जन साधारण की सहानुभति का प्राधार होते, और बरे २ बली राजाओं की सहायता और रजा पाते हुए भी दुहबी ब्रामों से अत्यन्त विकट मुकाबिला करना पड़ा था । उन लोगों की प्रतिद्वन्द्विता कभी कभी बुद्ध के लिये महा भयर होजाती थी । इतिहासलेखकों में जो ग्रामों को पनपद्धति को नीचा दिखाने और पृषित बनानेमन पिये दुख दिपे नहीं हैं। उनके किसी भी तकनीजिये, यूरोपीय पमण्डी विद्वान् उन सब की-पद्यपि वे उनके विषय से पोड़ी ही जान. जारी रस-सदा निन्दा दिया करते हैं, और किसी नबिसी बहाने उनका सहन किया करते हैं। फाहियान और मनसेनेची यात्रा-पुस्तकं लिखी हैं, वे सर्वथा सवाइयों का कोष नहीं हैं। उनमें से बहुत सी बातें पूज पर लिखी गई होंगी, पुष बनात्मक बुद्धि मे, कुछ दुरा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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