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नई परिपाटी समझ,-जैसा भारतवर्ष में सदा ही कुमा करता पा-विचारक लोग नये २ सिद्धान्त निकालते थे। उन लोगोंने मामूली सराम सिवाय कुछ अधिक ध्यान नहीं दिया । इसी कारण बौद्ध धर्म को उमति होती
ली गई, और अन्त में उसने वह जोर पकड़ा, जो बहीही कठिनाई से तोड़ा जा सका था।
बालरोगों के धर्म पम्प संस्कृत में थे, इससे साधारण सोग उनके समझने में असमर्थ थे, और इसी कारण पोर अन्धकार में पड़े राते थे। बुद्ध व्यास्थान उस समय की प्रचलित भाषा (पाली) में दुश्रा करते थे। अपढ़ से अपढ़ लोग भी उन्हें समझ जाते थे। वेद की बातों को देसपरोक कार से जानते तो हो नहीं, इस कारण उनमें बहन की शक्ति नहीं की। उन्होंने बुद्ध से जो पुख हमा लगमग नया ही जामा, और उनके मधुर और पित्ता. यामानों पर मुग्ध होकर उनके अनुयायी हो गये। इन कारों के अतिरिक्त और भी कई बेटे मटकार, परन्तु उनके उमेख की कोई आवश्यकता
बुद्ध नाम निरन्तर प्राकमों से सीज कर उन लोगों पर बड़े २ कटास और मर्मवेषी टीका टिप्पणी बिवा परते थे। वे उनकी प्रत्येक दर्शन पद्धति का सरन परते थे और मोमर, पासा), और मकार कहा करते थे तिसपर भी दोनों दले नाई बड़ा मेद नही था। यहां पर यूरोप के विरुद्ध प्रत्येक दो धर्म स्वातंत्र्य पहा है। यदि पूरेप में बुद्ध का जन्म होता तो वे या तो जला दिये जाते, या न्याय के मिस
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