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( २१ ) जैसे ही राजा शुद्धोदन को सिद्धार्थ का भागना मालूम हुमा, उन्होंने बहुतेरे दूत उन की खोज में भेजे परन्तु वे सब प्रकृतकार्य हुए। अपनी ढूंढ खोज में उन लोगों को वा शिकारी राजसी ठाठ में मिला, उसे के लोग अवश्य ईरान और तङ्ग करते, किन्तु चा सडक साथ पास से वह बचगया, क्योंकि उसने यथायं बात बतला पर उन लोगों को कोपानि शान्त कर दी । उम ने राज. कुमार के निकल भागने का सब कच्चा पक्का हाल कर सुमाया । राजा को पाना के अनुसार वे लोग फिर कुमार की खोज में चल पड़ने वाले थे, परन्तु चारहक ने उन लोगों को समझा बुझा कर रोका । उसने कहा "तुम लोग कुमार को लौटा लाने में सफलमनोरथ न होगे। वे अपने विचार, पुरुषार्थ, और निरषय में अत्यन्त दूढ़ है। कुमार ने जाते समय कहा था, " कपिलवस्तु को में उस समय तक नही लौट सकता जब तक मैं परवानान प्राप्त कर लंगा और बुद्ध न हो जाना। वे अपने विचार को पलटने वाले पुरुष नहीं हैं। जैसा उगोंने कहा है वैसा ही होगा, वे अपने विचार बदलने बासे नहीं हैं।" हक ने लोट पर राजा को सम समाचार दिये । उसने प्रयापति गौतमीको रिहा सब खमटिव प्राभूषा सौंपे, परन्तु उसमे वे दुःखदायक मुचि दिखाने वाले भाभूपर अपने पास न रख कर एक सरोवर में पास दिये । वह सब से पाभूपए-पुष्कर बहलाने लगा। लिहावं की नवयौवना पनी गोपा अपने पति के दृढ़ निरषय को खूब जानती चो। बहस दुःख. दायक वियोग के लिये पहले ही से बहुत कुछ तपार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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