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परिषम की ओर नुत से ढाल पहाड़ थे, और उत्तर को भोर यह स्थान एक मठ से मिला हुणा चा । हम पेड़ की पेही सदी लिये हुए पोली पो, इसकी पत्तियां चिनी, चमकदार और रीची, इस पेड़ के नीचे पर पास बुद्ध-निर्वाच-दिवसोत्सव पर नपतिगर, मन्त्री लोग और न्यायाधीश जुड़ा करते थे। इस पेड़ को इस दिन दूध से चते थे, दीपक जलाते थे, पुष्प वर्षा करते थे, और गिरी दुई पत्तियां बोन कर चल देते थे।
बोधिद्रम पास बनसङ्ग ने बुद्ध की एक मूक्ति देवी को उसने साष्टांग प्रवान किया। कहा जाता था कि इसको मैत्रेय ने बनवाया है। वह बुद्ध का अत्यन्त म शिवपा! उस मूत्ति और वाचारों ओर एक बेटी की जगह में, बहुत से धर्म सम्बन्धी स्तूप खड़े थे। ये विसी न किसी पवित्र यादगार में बनवाये गये थे।
बाबानी बतलाता, कि उसे इन मूर्तियों के पर एक पर पूजन करने में - दिन लगे थे। वहां पर तरह के रूप और भाजार के विहार, स्तूप और मठ थे। बोनी की बजासनम् नामक पहाड़ी मुस्य कर दिखाई नईपी। बहर पहाड़ी पी जिस पर बुद्धदेव बैठा
यपिस समय घटनास्थल पर पहले के वृक्षों का कोई चिन्दनी , परन्तु मनि नहीं बदली जा सकी। संचारों किन्तब भी दिखाई पड़ते हैं । ललित विस्तर माहिकान और पना के प्रामाविक लेसों की बापता है बोधिनराका पता लगा लिया गया है, और प्रत्येक पूर्व सिसित वस्तु का ठीक ठीक स्थान
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