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( ३८ ) करना नाहिये, न शासन देना चाहिये । हम अपने शासनों पर बैठे रहेंगे, वे चटाई से नीचे बैठ जावेंगे । परन्तु तुमको यह उदासीनता और असन्तोष देर तक मही ठहर मना । जैसे जैसे गुरू निकट भाते गये तैसे तैसे उन्हें अपने पासनों पर बैठा रहना कठिन मालूम होने लगा, और किसी एक भीतरी गुप्त शिक्षक ने उन लोगों से उन के सामने खड़े होने की इच्छा प्रकट की । यह मन्तःकरण पर प्रकृति को टङ्कार घो। सचमुच शीघ्र हो बुद्ध का भातक, और तेज सँभालना उन के लिये अत्यन्त कठिन हो गया, वे लोग एक एक करके खड़े होगये, वे लोग अपना निश्चय दूढ़ नहीं रख सके। कुछ ने उन्हें श्रादर सम्मान के लक्षण दिखाये, कुछ ने आगे बढ़ कर उनका स्वागत किया, और उनसे सादर उनका कोपीन, चार्मिक वस्त्र और भिक्षापात्र ले लिया, उनके लिये एक चटाई पिबाई और पैर धोने के लिये पानी भरा, फिर कहने लगे :___ "महात्मन् पाप का स्वागत है; चटाई पर विराज. मान इजिये।"
जप के पश्चात् उनसे उन उन विषयों पर बात चीत प्रारम्भ की, जिनसे उन्हें माशा पो, कि वे प्रसस है। जावेंगे। वे सब उनके निकट ही एक ओर बैठ गये और बोले :
शायुष्मन गौतम की इन्द्रियां बिलकुल पवित्र गई हैं, और त्वचा पूरे तौर से शुद्ध हो गई है। प्रायुहमन गौतम, ना तुम्हारे वेचान च सुल गये हैं जिन
पवित्र मान बिलकुल स्पष्ट दिखाई देता है, वह
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