Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

View full book text
Previous | Next

Page 148
________________ ( 88 ) बहुत पवित्र तीर्थ है, परन्तु उन से बढ़ कर बौद्ध लोग उसे पवित्र मानते हैं । पहले पहले बुद्ध ने इसी जगह अपना उपदेश दिया था, या जैसा बौद्ध पुरानों ने रूपक बांधा है, पहली बार धर्म का चक्र घुमाया था। यह चक्र* शौर उस में का धर्म सम्बन्धी लेख सब बौद्ध शाखाओं में प्रचलित है। उत्तर, दक्षिण और पूर्व में, तिब्बत और नेपाल से लेकर लङ्का और चीन+ तक इसका प्रचार है । सातवीं शताब्दी में यूनसेन ने काशी का जे वर्णन किया है, उससे सिद्ध होता है, कि बुद्ध के समय में काशी का उतना महत्व नहीं था, जितना उसके बाद हुआ । परन्तु उस समय भी वह एक बड़ा और विशाल नगर रहा होगा । हिन्दू धर्म के कई महा प्रधान केन्द्रों में एक यह अधिक महत्व का था और अब तक चला श्राता है । इस में कोई सन्देह नहीं, बुदु इसी कारण वहां गया था । वैशाली और राजगृह में ब्राह्मयों के सहस्रों शिष्य घे, और कदाचित् काशी में उनसे भी अधिक थे इस · • इस चक्र बौ, जो यह की तरह का होता है, चीन व तिब्बत बादि देशों के बौ 'बानेकामे' कहते है और भंगरेज बुटि होल' कहते हैं। इसके भीतर यह जब “ॐ मणि पद्म हुं" रूपा रहता है। + विब्बतियों के प्रार्थना चकों पर बायट में जो लेख लिखे है वे पढ़ने योग्य है । चादश्चिक सूत्रों के पपबीय वर्षो को इन लोगों ने पचर पचर बैसाको मान लिया ● मे दो बड़े बड़े चक्र चलाते है, उन पर पवित्र प्रार्थनाएं विखी पडती है और इस तरह वे लोग बुद्धदेव को प्रथिना करते है । +नसे कहता है कि बाम : मौल सम्पो और तीन मौल चोड़ी थी, उसमे चन्य कई कीर्त्ति सम्भों में एक सपनो देखा था जो २१-१४ मज ऊ ंचा था और पामही एच पाषाच छम्म था जो २५-२९ मचा था। इसे पोष मे बनवाया था। यह ठीक उसी जगह या अहो बुह मे अपना पहला व्याख्यान दिया था चौर धर्म का चक्र माया चा ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178