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बहुत पवित्र तीर्थ है, परन्तु उन से बढ़ कर बौद्ध लोग उसे पवित्र मानते हैं । पहले पहले बुद्ध ने इसी जगह अपना उपदेश दिया था, या जैसा बौद्ध पुरानों ने रूपक बांधा है, पहली बार धर्म का चक्र घुमाया था। यह चक्र* शौर उस में का धर्म सम्बन्धी लेख सब बौद्ध शाखाओं में प्रचलित है। उत्तर, दक्षिण और पूर्व में, तिब्बत और नेपाल से लेकर लङ्का और चीन+ तक इसका प्रचार है । सातवीं शताब्दी में यूनसेन ने काशी का जे वर्णन किया है, उससे सिद्ध होता है, कि बुद्ध के समय में काशी का उतना महत्व नहीं था, जितना उसके बाद हुआ । परन्तु उस समय भी वह एक बड़ा और विशाल नगर रहा होगा । हिन्दू धर्म के कई महा प्रधान केन्द्रों में एक यह अधिक महत्व का था और अब तक चला श्राता है । इस में कोई सन्देह नहीं, बुदु इसी कारण वहां गया था । वैशाली और राजगृह में ब्राह्मयों के सहस्रों शिष्य घे, और कदाचित् काशी में उनसे भी अधिक थे इस
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• इस चक्र बौ, जो यह की तरह का होता है, चीन व तिब्बत बादि देशों के बौ 'बानेकामे' कहते है और भंगरेज बुटि होल' कहते हैं। इसके भीतर यह जब “ॐ मणि पद्म हुं" रूपा रहता है।
+ विब्बतियों के प्रार्थना चकों पर बायट में जो लेख लिखे है वे पढ़ने योग्य है । चादश्चिक सूत्रों के पपबीय वर्षो को इन लोगों ने पचर पचर बैसाको मान लिया ● मे दो बड़े बड़े चक्र चलाते है, उन पर पवित्र प्रार्थनाएं विखी पडती है और इस तरह वे लोग बुद्धदेव को प्रथिना करते है ।
+नसे कहता है कि बाम : मौल सम्पो और तीन मौल चोड़ी थी, उसमे चन्य कई कीर्त्ति सम्भों में एक सपनो देखा था जो २१-१४ मज ऊ ंचा था और पामही एच पाषाच छम्म था जो २५-२९ मचा था। इसे पोष मे बनवाया था। यह ठीक उसी जगह या अहो बुह मे अपना पहला व्याख्यान दिया था चौर धर्म का चक्र माया चा !
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