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( ४४ ) तरह तरह के सुन्दर, हरे भरे पुष्पमय, वृक्षों से परिपूर्ण पा ; मीठे पानी के चमकते हुए झरने पवंत की सुन्दर प्राकृतिक बटा का प्रत्येक समय भांति भांति के प्रतिबिम्ब उतारा करते थे। इस पर्वत के पास पास बुद्ध प्रफुल्लचित्त होकर घूमा करते थे। बहुत से शिष्यों घिरे रह कर, बुद्ध ने यहीं महाप्रज्ञा पारमिता सूत्र, और अन्य बहुत से सूत्र पढ़ाये थे। ___ राजगृहके उत्तरीय फाटक पर एक विशाल विहार था यहां पर युद्ध प्रायः रहा करते थे। यह कालान्तक वा कालान्तवेलु वन कहलाता था। यमसङ्ग के लेखानुसार कालान्त एक व्यापारी का नाम था । उसने अपना उप. वन पहले ब्राह्मणों को दान किया था। पीछे बुद्ध के विचारों की झनकार कान में पड़ने पर उसने ब्राह्मणों से अपना दिया हुमा दान बीन कर, बोद्धों के हवाले किया । वहां उसने एक मनोहर विशाल भवन बनवाया, श्रीर बुद्ध को भेंट किया । इसी स्थान पर बुद्धने अत्यन्त प्रसिद्ध शिष्य अपने धर्म में मिलाये थे। उन के नाम थे शारि पुत्र, मुगलान और कात्य यम । इसी भवन में बुद्धको मृत्यु के बाद पहली बौद्ध महासभा हुई थी।
राजगह से थोड़ी ही दूरी पर एक जगह थी उसका नाम था नालन्द । मालूम होता है बुद्ध ने यहां अपना श्रानन्दमय वास बहुत दिनों किया होगा। यहां पर भक्त राजाओं ने बहुत से मूल्यवान् कीर्ति स्तम्भ बनवाये
थे, इसी से उपर्युक्त बात सिद्ध होती है। पहले २ इस ' स्थान पर श्रामों का एक बड़ा उपवन था, पास ही एक भील ची ।. उपवन का स्वामी एक धनी पुरुष था।
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