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रहा । नालन्द विश्व विद्यालय के गुरागाही एवं प्रतिघिसत्कार कारी विद्वानों ने इसका पूर्णता प्रादर सम्मान किया था। इसे सुख पहुंचाने में उन लोगों ने कोई बात उठा नहीं रक्खी थी। इस बात को यह स्वयं कृतवता के साथ स्वीकार करता है। यहां हम नालन्द का अधिक वर्यन नहीं कर सकते । अपने प्रधान लक्ष्य बुद्ध इति हास के विषय को फिर गहण करते हैं।
बिम्बसार अल्पवयस ही में सिंहासनारूढ़ हुआ था। नवीन धर्म में दीक्षित होने पर उस ने तीस वर्ष राज्य किया। उसका पुत्र और उत्तराधिकारी अजात शत्र, जिस ने पितृहत्या कर राजसिंहासन पाया घा, पहले इस नये धर्म से चिढ़ता था । उसे यह पसन्द नहीं था। सिद्धार्थ के चचेरे भाई दुष्ट देवदत्त की बाबत प्रारम्भ के पृष्ठों में हम कुछ कह पाये हैं । स्वयम्वर के समय से बह गौतम का शत्रु हो गया था। उसकी मन्त्रणा से अजात. शव ने बुद्ध को फांसने और कष्ट पहुंचाने के लिये बहुतेरे फन्दे रचे; परन्तु वह कृतकार्य नहीं हुमा । उलटा उसके शुद्ध गुखों, परिष्कृत और परिमार्जित बुद्धि और पवित्र उपदेशों से वह उसके ऊपर रीझ गया, और उसने बुद्ध से दीक्षा लेली । उस ने जिस तरह अपने पिता का सिंहासन पाया था, वह घोर अपराध भी बुद्ध के सामने खोल कर स्वीकार किया । ला एक बौद्ध सत्र का माम सामनापन सत्र । इस समस्त सत्र में अजातशत्र को दोबा हो को बाते भरी हैं। इस का कारण यह है कि युद्ध-को इसी एक मनुष्य को अपने धर्म में दीक्षित करने में बड़ी बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा
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