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५०० व्यापारियों ने मिल कर इसको कय किया, और बुद्ध को दान करदिया । बुद्ध ने इसके पहले तीन महीने उन लोगों को अपने धर्म में दीक्षित किया था। नरेश विम्बिसार उत्तराधिकारियों ने इसे बहुमूल्य भवनों से सजाया था। वहां पर उन लोगों ने बः मठ बनवाये चे। ये साराम कहलाते थे। इन में से प्रत्येक एक दूसरे से बड़ा था। एक नरेश ने इन सबों को एक में जोड़ने के लिये ईंटों की दीवार से घेर दिया था।
समसङ्ग ने लिखा है कि भारतवर्ष भर में इन की बराबरी की लम्बाई चौड़ाई और मनोहरता में एक भी इमारत नहीं है, ये ही सर्वश्रेष्ठ हैं। वह कहता है, कि वहां राजा की उदारता से दस सहस्त्र साधु अर्थात् विद्यार्थी रहते थे; न के लिये कई नगरों का भूमि कर मय होता था। नालन्द विश्वविद्यालय के मठों ने भीतर सीमावास्यं नित्य शिक्षा दिया करते थे, और विद्यार्थी अपने विद्वान् अध्यापकों का तेजस्विता और मावेश के साथ अनुसरण करते थे। सहिष्णुता भी वहां की विचित्र पी। सब मिलजुल कर विद्याध्ययन करते थे। वेद और बौद्धसूत्र बराबर निष्पक्षपातसे पढ़ाये जाते थे। इनके अतिरिक्त आयुर्वेद और गढ़ दर्शन, विधानादि शाम भी पढ़ाये जाते थे। बुद्ध का यह प्राचीन निवास स्पाम पीनी यात्री के समय में भी पवित्र समझा जाता पा, और शादर सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। यह पवित्र विश्वविद्यालय सान सो वर्ष का प्राचीन पा जिस समय किन नसगने इसे देखा पा । वहां पर यह यात्री कईवर्ष रहा और मानन्द साप प्रतिषिसत्कार भोगता
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