Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

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Page 149
________________ ( २ ) कारण बुद्ध को अपने विचार और सिद्धान्त के पलाने में इस से अधिक भयङ्कर और विस्तृत मैदान कोई नहीं मिल सका। दुर्भाग्यवश, काशी में रहने का बुद्ध का अधिक वर्षन हमें नहीं मिला । ललितविस्तर ने विस्तार पूर्वक जिस कथा का वर्णन किया है वह पांच शिष्यों की बात चीत के बाद शेष हे जाती है। अन्य सूत्र शापमुनि जीवनचरित की बातें शृङ्खलाबद्ध नहीं बताते । इसी कारण बुद्ध के काशी में ब्राह्मणों से जो शास्त्रार्थ सम्बन्धी झगड़े हुए होंगे, वे अधिकतर अज्ञात हैं। बुद्ध ने किस तरह विपतियों के विरोध का सामना किया, और किस तरह स. फलता पाई ये सब बातें जानने को कौन उत्सुक न होगा परन्तु क्या कहें, अभी तक इनका ब्यौरेवार वर्णन प्रकाशित नहीं हुमा है। जब तक बौद्धों के नये २ सूत्र प्रकाशित न हेनि, तब तक यह चर्चा एक किनारे रखनी पड़ेगी। अब तक जितने सूत्र प्रकाशित हुए हैं उम से उपर्युक्त बातों का पूरा पता नहीं मिलता। बहुत से सूत्रों में बुद्ध के एकाप कार्य काही वर्सन मा है। कोई कोई उसके बहुतों में से एकाध उपदेश को ही गाया गाते हैं, परन्तु उनके जीवन का पूरा वर्खन कोई भी नहीं देता । किन्तु फिर भी उनमें इतना मसाला मरा हुमा, कि बांट कर. बुद्ध के जीवनचरित सम्बन्धी घटनाओं को सङ्कलित करने में कोई कठिनाई नहीं पड़ती। केवल उनका क्रम ठीक नहीं से उसे ठीक करना मुगम है; क्योंकि घटनाओं को सचाई में कहीं अन्तर नहीं पाया जाता । बुद्ध के जीवन की कई मुख्य पटनाएं कुछ गड़बड़ के साथ कही गई है, इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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