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( ३ ) विद्या अधिकृत होती है, यह अनुभव और न्याय का मागं है, यह बुढ़ापे और मृत्यु को कोमस कर डालता है, या परशान्त मार्ग है जिस में पाप का भय नहीं है और निर्वास की ओर सीधा चला गया है।" तात्पर्य यह कि सिद्धार्थ ममय से अपने को बुद्ध समझने लगे।
जिस जगह मिढा बुद्ध हुए वह कामों में उतनी हो प्रमिह जितनी कपिलवस्तु नगरी । ये चार स्थान एक ही से प्रमिह हैं, कपिल वस्तु, उरुवेल-जहां ६ साल घोर सप पिया, बर स्पाम जहां उन्हेंाने बुद्धत्व पाया और कुशीनगर-जहां उनका निर्वार हुमा । जिस स्थान पर मिद्धार्थ बुद्ध हुए, उसे बोधिमाह कहते हैं बम का अर्थ है सम्पूर्व बुद्धि का स्थान । इन बातों को बोहों की प्रग. पित पीढ़ियों ने रचित रक्सा है।
गौतम ऋषि बोधिमरह को जा रहे थे कि नैरखना के किनारे सहें। ने सड़क के दाई ओर एक पास बेचने वाले को, जिसका नाम स्वस्ति चा, खस खोदते हुए देखा । बोधिस्तत्व-भावो बुद्ध-उस की तरफ फिरे और घोड़ा सा सर मांगा। पश्चात् खस लेकर उसकी जड़ें अपर की तरफ और नो नीचे की तरफ कर चटाई का साकार बनाया, और पूर्व दिशा की ओर मुंहार के बैठ गये। जिस पेड़ के नीचे वे बैठे थे उसका नाम बो. पिदम पड़ा।
प्रासम समाने पर उन्होंने अपने बाप कहा, "ब तक मैं पूर्व पान प्राप्त न कर लूंगा तब तक यह म उलूंगा, चाहे बाल, बहो, और मांसपों न नष्ट हो जावें।"
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