________________
नहीं । उन्हों ने एक बार अपने भाप कहा, " जो कुछ मैं ने अभी तक किया है, या प्राप्त किया है, उस से मैं मानुषिक-धर्म से आगे बढ़ गया हूं? अभी तक मैं उस पद पर नहीं पहुंचा हूं जहां उच्च ज्ञान को स्पष्टतया समका सकं । मैं अभी तक जान के सच्चे रास्ते पर नहीं पाया हूं, और न उस मार्ग पर पहुंचा हूं जिस से बुढ़ापा, रोग और मृत्यु की सच्चो औषधि मिल जाती है।" कभी कभी सन्हें अपने बचपन की सुधि पाती थी, रम्हें ने अपने पिता के उपवन में जम्बू वृक्ष के नीचे जो जो स्प्न देखे थे वे सब धीरे धीरे उस के इ.दय पर उतरने लगे और उन्होंने अपने आप प्रश्न किया, “ क्या वे स्वप्न अवस्था और विचारों की प्रौढ़ता के साथ सच्चे होंगे ? क्या मेरे बचपन के विचारों ने जो मुझे विचित्र विचित्र वचन दिये थे वे पूरे होंगे ? क्या मैं मनुष्य जाति का मोक्षदाता होगा ?" ऐसी ऐसी बातें वे पूरे एक सप्ताह तक सोचते रहे । अंत में उन्होंने अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने प्रश्न का हां में उत्तर दिया ।
"हां, अब मैं ने महत् होने का सच्चा मार्ग ढूंढ़ निकाला है। यह मार्ग प्रात्मबलिदान का है और यह ऐसा है कि कभी नहीं चूकेगा, कभी विफल न होगा और कमी निरुत्साह न करेगा । यह मार्ग पवित्र पुण्य का है; इस मार्ग में कोई कांटा, कङ्कड़ नहीं-इस में दुष, ईर्ष्या, अज्ञान और तृष्णा दूर रहेंगों; यह वह मार्ग है जिस से स्वाधीनता मिलती है, और जिस से पाप जह मूल उखड़ जाता है। यह वह मार्ग है जिस से भावामामन का डर न रहेगा, यह वह मार्ग है.बिस से विश्व,
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com