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करने लगे । यह भोजन एक ग्रामीय बालिका सुजाता नाम की प्रति दिन लाया करती थी। थोड़े ही दिनों में सोंने अपनी शारीरिक शक्ति और सुन्दरता, जिन्हें उन्होंने अत्यन्त कठिन संयमों से बिगाड़ दिया था, फिर प्राप्त कर ली। उन के पांचों शिष्यों को, जो अब तक उन के बड़े श्रद्धालु भक्त थे और उन्हीं को देखा देखी घोर सप करते थे, अब उनकी इस मिलता पर बड़ी पृषा हुई। उन्हें जोड़ कर काशी की ओर ऋषिपाटन नामक स्पाम में चले गये । यहाँ पर अन्त में हम लोगों का गौतम ऋषि से मिलाप हो गया था।
सिद्धार्थ ने अब तपस्या और उपवास का त्याग कर दिया । अकेले उरुवेल के निकट पाश्रम बना कर, मनन करते हुए रहने लगे। इस में कोई संदेह नहीं, किसी जगा सिद्धार्थ ने अपने नबीन धर्म के सिद्धान्त निषित किये, और अपने अनुयायियों के लिये नियम बनाये। नो भेष और नियम वे अपने अनुयायियों के लिये बनाना चाहते थे उन का वे स्वयं उदाहरण बने; क्योंकि ऐसा किये बिना उनके महामत शिष्य भी बिद्रान्वेषर किये बिना न रहते, और नियमों का बर्ता जाना भी कठिन है। जाता । जो धर्म-व- । ने६ साल पहले एक शिकारी से बदले ये वे बिल्कुल चिप होगये थे । उनी वस्त्रों से वे नगर नगर घनते थे, और ऋतु का कठोर प्रभाव भी उन्हीं सहा था, तात्पर्य यह, कि उनहीं से उन्हें ने भनी तक इतने बड़े दिन बिताये थे। अब में चि खरी मैदाने के काम के न रहे, इस कारण नये बनी को मावश्यकता है। माता उसवेल के सरदार
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