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के साथ चल दिये। उन्हें ने अपने पहले गुरु का साथ कोड़ दिया और सिद्धार्थ के शिष्य हो गये । वे सब लोग उच्चजाति के थे । उन सबों के साथ मे नवीन प्राचार्य पहले गया पर्वत की भोर चले गये, फिर नेरलुना नदी के किनारे पर उरुवेल. नामक गांव के निकट छाये । वहाँ इन्होंने अपने सिद्धान्तों को फैलाने के पहले उन पर विचार किया । उस समय के सिद्धान्तों और ब्राह्मणों
विद्या से इनका जो फिरगया । उन में जो कुछ त्रुटि घो, ये समझ गये, और इस तरह इन्होंने उन लोगों से अपने को योग्यता में अधिक ममझा । इस पर भी इन्हें अपनी निर्बलता के ही दूर करने के लिये अधिक बल प्राप्त करना था, और यद्यपि ये उस समय के संन्यास को कड़ाइयों को बुरा समझते थे तथापि इन्होंने तप और ब्राहमदमन कई साल तक करते रहने का दृढ़ निश्चय कर लिया । इस के दो कारण थेः- एक तो यह कि, इन्हें ब्राह्मयों ही के सदृश लोकप्रियता प्राप्त करनी थी, श्रीर दूसरे इन्हें इन्द्रिय दमन भो पूरा करना था ।
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इस तप के लिये उरुवेल गांव बौद्ध इतिहासों में प्रसिद्ध है । चिठ्ठार्च मे यहां ६ वर्ष तक बराबर उग्र तप किया था। उन्हों ने अपनी इन्द्रियों के अत्यन्त भयानक ब्राह्ननयों का सूब प्रतिहार किया ।
बः वर्ष के अन्त में अत्यन्त इन्द्रिय-दमन, उपवास, कष्ट सहन और चात्मसंयम के बाद सिद्धार्थ को मालूम दुधा कि इस तरह पूर्व ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता, और इस कारण उन्होंने यह अत्यन्त दुःखदायी संघम शेष करने का नियन कर लिया। जब वे नियमानुसार भोजन
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