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अपने दृढ़ निश्चय से विकिपर भी चलायमान न हुए। कुछ दिनों राजग में रहने बाद वह नैरजमा नदीमाधुनिक पग-बिमारे सांसारिक झगड़ों और झझटों से मांस इटावरमा गये और विरों की तरह रहने लगे।
सा में बड़े भारी मारव की एक ऐतहासिक पुस्तक महाबंश नाम की। यह पुस्तक विक्रम की पांचवीं शताब्दी में लिखी गई थी। इस का लेखक महानाम है। इस महामाम ने अत्यन्त प्राचीन बौद्ध पत्रों और पिट्ठों सेण्टा पर लिखा था। इसमें लिखा है कि बिम्बसार बौद्ध हो गया-या पन्यकार के शब्दों में विजेता २ दल में मिल गया। उस में यह भी लिखा है, जिवाब १ बर्ष यानी अपने राज्य काल के १६ वर्ष में पावर बोहमा पावह १५ साल की शायु में रामसिंहासन पर बैठा था और इसने १२ वर्ष तक राज्य विवादा। विम्बसारका पिता रामा मुद्धोरम-सिद्वार्थ . या पिता-बा परम मित्र था, हम दोनों में अत्यन्त मोखिकोसीबार सिद्धार्थ और बिम्बसार में भी पनिट निवादी गई थी। बिम्बमारोसरले बातमीपारामा पापोंदिया पहले युद्ध के हिंसा और दवा के विचारों से उससे सहमत नहीं चा, परको भी उसने बताया और तबियापा, परन्तु हिरबानीका अनुवर्ती हो गया। होमपा सोमाले पर बने। बमल गौतम को गुस रामानों और मनुष्यों का सामना । यद्यपि उन सेग्गों
बरन विद्वान्तों का बड़े नाम के साथ स्वागत विवापा, तापिस अपने पर सभी पूरा भरोसा
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