Book Title: Jain Aur Bauddh ka Bhed
Author(s): Hermann Jacobi, Raja Sivaprasad
Publisher: Navalkishor Munshi

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Page 131
________________ ( २४ ) छोड़ कर वह मगध देश में आये, और उसकी राजधानी राजगह पहुंचे । उनके मानेसे पहले ही उनकी मुन्दरता और विद्या की ख्याति यहां प्रापहुंची थी। ऐसी सुन्दरता को भितु के दुःखपूर्ण लिवास में देख कर लोग अचम्भे में भागये और उन्हें चारों तरफ से घेरने लगे । उस दिन गलियों में इतनी भीड़ हुई, कि नीची जाति के लोगों ने मद्यपान करना छोड़ दिया, बाज़ार बन्द होगये और क्रय विक्रय बंद होगया, क्योंकि सब कोई उस श्रेष्ठ भिक्षु स्यागी महात्मा को निहारने की लालसा रखते थे। स्वयं राजा बिम्बसार उन्हें देख कर उनके मातंक में श्रागया था। जब वे उस के महल की खिड़की के नीचे से उत्साही और जोशीले लोगों में होकर जारहे थे तो उस समय राजा ने भी स्वागतसूचक शब्द कहे। सिद्धार्थ का निवास स्थान पारडव गिरि की ढाल पर था। बिम्बसार ने उसे अपनी भाखों से वहां तक पडियाया और मादर प्रदर्शित करने के लिये, बहुत से सरदारों के साथ उन के पास स्वयं गये। बिम्बसार सिद्धार्थ को ही प्रायु का था। सिद्धार्थ जिस विचित्र दशा में थे उसका बिम्बसार केहदय पर बड़ा असर हुना, उन के मधुर भाषण और शान्त स्वभाव ने उसे मोह लिया। उनकी धम्मशीलता और सद्गु ने बिम्बसार को लुभा लिया, और उसी समय से उसने सिद्धार्थ के सिद्धान्तों का संरक्षकत्व स्वीकार किया और मरण पर्यन्त उन की रक्षा करता रहा । बिम्बसार ने इस संसारत्यागी विरागी को बहुत ही चित्ताकर्षक जगहों के देने का लालच दिखा कर फिर संसार में खींचने का उद्योग किया, परन्तु निस्पर महात्मा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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