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( ३२ ) विमा हिले दुले वे २४ घंटे भासन पर बैठे रहे। जिस समय धीरे धीरे प्रातःकाल हो रहा था, जिस समय नींद सब को प्रादबोचती है उसी समय गौतम. मुनिने पूर्स बुद्धत्व और धान प्राप्त किया।
उस समय वे यकायक पिला उठे, "हां! निःसन्देश अब इस तरह मैं मनुष्य जाति के कष्टों को दूर करूंगा। पृथ्वी पर हाथ पटक कर-श्रावेश में प्रा सम्होंने कहा, " पृथ्वी मेरी साक्षी हो, यह सम्पूर्ण जीवों का निवास स्थान है, इस में चल अचल सब विद्यमान हैं, यह पक्षपातरहित है, यह साक्षी देगी, कि मैं झूठ नहीं बोल
इस समय बुद्ध बत्तीस वर्ष के थे। जिस पेड़ के नीचे बोधिमण्ड में बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त किया था, वह पीपल का वृक्ष था। इस पीपल के पेड़ को बौद्ध लोग बोधिद्रम कहते थे । सम्बत ६९ विक्रमी में बुद्ध की मृत्यु के १२०० साल बाद चीनी यात्री ह्य नसेन ने यह वच देशा था । ललितविस्तर में लिखा है, कि यह मगध की राजधानी राजगह से ४५ मील की दूरी पर था, और नैरंजना से कुछ दूर नहीं था। इस पेड़ की भारों तरफ षको पक्की नही दीवारें घों, जो पूर्व पश्चिम की ओर बढ़ती चली गई थी, और घर दतिरको ओर सरासर मोबी पी । सदर फाटक पूर्व की ओर था। पास के सामने नरंजना नदी यो । दक्षिणी फाटक के सामने एक बड़ा पोखरा घास में नई सन्देह नहीं यह वही होगा जिसमें शुद्ध बड़ा गला कान बस वो कर अपने पारने के लिये तय्यार किया था।
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