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( २० ) गये । सूर्य निकलने तक वह १८ कोस निकल आये थे। यहां पर वह घोड़े से कूद पड़े, लगाम घाराहक के हाथ में देकर, सब आभूषण और रत्र उतार उसके हाथ में दे, उसे बिदा किया।
ललित विस्तर ग्रन्य, जिस से ये सब बातें ली गई हैं, कहता है कि जहां सिद्धार्थ ने चाण्डक को विदा किया वहां एक चैत्य-एक प्रकार का पवित्र स्तूप-खड़ा किया गया था और, वर ग्रन्थकार के समय सक चाण्डक निवर्तन के नाम से प्रसिद्ध था " । ह्य नसैङ्ग ने भी इस स्तूप को देखा था । वह कहता है, "यह स्तूप सम्राट अशेक ने एक जंगल को नुक्कड़ पर बनवाया था, जहां से मिद्धार्थ अवश्य निकले होंगे। यह कुशीनगर को जाने वाली राह पर बना था। इस के ५१ साल बाद इन्हों ने कुशीनगर में निर्वाण पाया था, इस से सिद्ध होता है कि घर से भागने के समय सिद्धार्थ की आयु २९ वर्ष की थी, क्योंकि वे ८० वर्ष की अवस्था में निर्वाण पद को प्राप्त हुए थे।
जब राजकुमार अकेले रह गये तो इन्हेंाने जाति और पद के शेष चिन्हें। से भी कुटकारा पाया। पहले उन्हेनि अपने लम्बे लम्बे बाल सलवार की धार से काट कर रवा में छितरा दिये,इस के बाद उन्हों ने अपने रेशम के राजसी वस्त्रों को एक शिकारी के पुराने मृगचर्म के वस्त्रों से बदल लिये । पहले तो शिकारी कुछ हिचकिचाया पर जब उसने देखा, कि किसी बड़े आदमी से व्यर्थ ही विरोध करना पड़ेगा सब उस ने असमता से अपने चर्म-चीबड़े उतार कर दे दिये । .
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