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पुरुष कहां है, जो इसे देख कर भागे के सुख और भोग विलास का अनुमान करे ?” इस तरह विना भागे गये
राजकुमार फिर नगर को लौट आये ।
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फिर एक दूसरे दिन वह पश्चिमी फाटक से आनन्द उद्यान को जा रहे थे कि मार्ग में उन्होंने एक मुर्दे को काठी पर जाते देखा, ऊपर कपड़ा पड़ा हुआ था, उस के साथ रोते हुए बान्धव जा रहे थे, अपनी चीत्कारों से, बाल खींचने से, मस्तक पर धूल डालने से, और छाती पीट पीट कर चिल्लाने से उन लोगों ने यह दृश्य और भी अधिक करुणा पूर्ण कर रक्खा था । राजकुमार ने अपने रथवान से कहा हा ! शोक ! उस जवानों पर जिसे बुढ़ापा नष्ट कर डालता है, हा ! शेक ! उस स्वास्थ्य और छारोग्यता पर जिसे रोग मटियामेट कर डालता है । हा ! शोक ! उस जीवन पर जे मनुष्य को इतना थोड़ा समय देता है । क्या अच्छा होता है यदि बुढ़ापा, रोग, या मृत्यु एक भी अस्तित्व न रखता होता । श्रहा ! क्या अच्छा हो यदि बुढ़ापा, रोग और मौत सदा के लिये नष्ट कर दिये जाते ।"
इस तरह अपना विचार प्रगट कर कुमार ने कहा " घर लौट चलो, मैं स्वतन्त्रता की प्राप्ति का उपाय श्रवश्य सोचूंगा।”
अन्तिम संयोग * ने सिद्धार्थ को सब चिन्ता श्रीर हिचकिचाहट दूर कर दो। अन्त में एक दिन वह श्रा
*ये भिन्न २ संयोग बौद्ध पुराचों में प्रसिद्ध है। जहां जहां सिद्धार्थ का इन संयोग से मिलाप हुआ वहां वहां सम्राट अशोक महाराज ने सूप और बिहार बनवाये थे । विकमौ सम्वत् को सातवीं शताब्दी के आादि में काम बैद्य ने इन के खंडहर देखे थे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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