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नन्द उद्यान के लिये नगर के उत्तरीय फाटक से जा रहे थे । उस जगह उन्हें। ने एक शान्त, शुद्ध और गम्भीर प्रकृत ब्रह्मचारो भिक्षु को देखा उस की बाखें नीचे को धों, इधर उधर चचनताये न हुलाता था और बड़े निस्पृह भाव के साथ अपने लवादे को पहने कमण्डल लिये जारहा था । राजकुमार ने पूछा << यह कौन है ?"
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ग्यवान ने उत्तर दिया यह एक भिक्षु है । इमने सम्पूर्ण तृष्णामय इच्छाओं को त्याग दिया है और बहुत पवित्र जीवन व्यतीत कर रहा है । यह जितेन्द्रिय होने का प्रयत्न करता है और विरक्त साधु हो गया है । अब न तो इस में इच्छा का प्रचण्ड श्रोतः है और न इस में ईयां है, भिक्षा के सहारे रहता है ।"
सिद्धार्थ बोला " ठीक कहा, बहुत ठीक है। ऋषियों ने पहले ही से इस उत्तम जीवन का प्रादर्श उपस्थित कर दिया है। यही मेरा ब्राश्रय होगा और यही दूसरों का भी । यही जीवन सुख और शान्ति नय है।”
इसके बाद युवक सिद्धाचं अपने घर बिना लुम्बिची गये हो एक निश्चित विचार पर टूढ़ीभूत हो कर कीट माये ।
अब सिद्धार्थ का हार्दिक भाव बहुत दिनों तक डिपा रहा I राजा को किसी ने शीघ्र सब हाल हमा दिवा, और उन्होंने और भी अधिक कड़ाई के साथ पहरा और देख रेख का प्रबन्ध कर दिया। हर जगह महरो बड़ी सावधानी से नियुक्त किये गये, सब फाटकों पर प्रहरी रहने लगे, और राजा के सेवक गय दिन रात बड़ी चिन्ता में रहने लगे। पहले पहले सिद्धार्थ मे
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