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इन बातों को सुन कर राजा को बड़ा दुःख हुमा । उन्होंने कठिनाई से कलेजा बाम पर कहा "प्यारे बेटा, तुम जो कुछ चाहते हो वह मिल नहीं सकता, मैं असम हूं। यहां तक कि हषि लोग भी इन से छुटकारा नहीं पा सकते । बुढ़ापा,बीमारी, राम और मृत्यु सबके भाग्य में साधाररतः एक से हैं।"
उस विचारशील नवयुवा ने फिर कहा “ यदि मैं बद्धावस्था, रोग, मृत्यु और जीता मे नही बच मकता
और यदि महाराज, पाप मुझे उपरोक्त बातें नहीं दे सकते तो कृपा करके कम से कम एक वस्तु, जो कम महत्व की नहीं, तो देरी दीजिये कि मैं मरने के बाद प्रावा. गमन के पचड़ों में उद्वार पा जाऊ"। . अब राजा ने समझ लिया कि ऐसे दृढ़ विचार का विरोष करना व्यर्ष प्रया, प्रातः ही उन्होंने सम्पूर्ण घापों को बुलाकर दरबार किया और वह शोकमद समाचार सुनाया । उन लोगों ने राजकुमार के भागने का बलात् रोकना मिरिचत किया। उन लोगों ने स्वयं नाल
माटों पर पहरा देने का भार अपने ऊपर लिया। युवा पुरुष पारे वालों का काम करने लगे। और जो वह थे उन्होंने यह सूचना नगर में फैला दी कि सब लोग भाने वाले समय के लिये तय्यार हो नार्वे । राजा अद्धोदन प ५०० चुने हुए शाप सत्रियों के साथ माल के सदर बाटक पर जाकर हट गये । राणा के तीन भाई, युवा सिद्धार्षदेचा, नगर के अन्य फाटकों पर जा कर मह गये। और शाम लोगों का एक सरदार नगर के केन्द्र में जाकर बस गया, और देखने लगा, कि राजाचा नियम
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