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चालाकी से निकल भागना घृणास्पद समझा, और इसे किसी भावश्यकता के समय के लिये छोड़ दिया। उन्हें अपनी पत्नी गोपा पर बहुत विश्वास था। एक रात स्वप्न देखते देखते ये चौंक पड़े, ऐसा बहुधा हुमा करता था, गोपा ने इन स्वप्ने का कारण पूछा । उन्होंने साफ साफ बता दिया, और अपना भेद भी समझा दिया । भावी विछोह को चिन्ता में वह घबहाई परन्तु उन्होंने समझा बुझाकर शान्त किया। उसी रात को वे अपने पिता के पास गये, और बहुत ही श्रादर सन्मान और सङ्कोच के साथ बोले " महाराज प्रब वह समय भागया जिस समय मुझे पृथ्वी पर स्पष्टतया प्रगट होना चाहिये, मैं विनय करता हूं, कृपया विरोध मत कीजिये, और उसके कारण दुःखित मी न हूजिये । हे महाराज ! कृपा कर के मुझे बुट्टी देर, अपने कुटुम्ब और प्रजा से विदा होने की भाज्ञा दो।"
राजा की प्रांखों में आंसू भागये, और भरे हुए गले से उत्तर दिया, " बेटा तुम्हारे प्रयोजन के सिद्ध करने के लिये कहो मैं क्या कर सकता हूं ?" सिद्धार्थ ने नम्रता पूर्वक कहा “ मुझे चार वस्तुओं की इच्छा है जिन्हें मैं श्राप से मांगता हूं, और पाशा है कि आप स्वीकार करेंगे। यदि भाप इन्हें मुझे दे सकें, तो मुझे सदा अपने घर में देखोगे, और मैं कमी श्राप से अलग न होऊंगा । महाराज इन बातांको मुमो दीजिये, कि बुढ़ापा मुझे कनी में दवीचे, मैं सदा जवान और स्कर्तिमय तेजस्वी रहूं, रोग का प्राकम मेरे अपर महो, और मेरा जीवन नंती बनी रवि, और मुझो कर फीका पड़े।"
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