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सारी ने कहा, "कुमार, यह पुरुष बुढ़ापे के कारण इतना निबंल हो गया है, सभी सब इन्द्रियां अशक हो गई है, दुःखों ने उसके बल का नाश कर दिया है, समले सम्बन्धियों ने उससे किनारा कर लिया है; और इस का कोई रक नहीं है, प्रत्येक काम में निकम्मा होने के कारण, यह बस में सड़ी हुई लकड़ी की तरह क दिया गया है। यह कुछ इस के घराने को विशेषता नहीं है। जितने जीव हैं उन सब का यौवन बुढ़ापे से विचित हो जाता है, साप के माता पिता मादि सम्पूर्ण सम्बन्धी और अन्य वर्ग का भी इसी तरह अन्त होगा। यह सब के लिये स्वाभाविक बात है।"
यह सुनकर सिद्धार्थ ने कहा "प्रधान और निबल पुरुष में दूरदर्शिता नहीं होती, सो कारर वह जवानी
मद पर हो पर घमारा परता और भाने वाले बुढ़ापेवा विचार नही रखता। जब मैं मागे नहीं जाऊँगा। रमान तुरन्त रख को लौटायो । मैं भी बुढ़ापे से प्राकमरित होने वाला हूं, फिर इस भोग का पा प्रचं?" लुम्बिनी गये बिना ही राजकुमार लोट पाये।
पिर एक दूसरे दिन गुत के सङ्गियों के नाच वा मानन्द उद्यान की तरफ दमिती काटकसे जा रहे थे कि पहा नहोंने एक उबरपोहित, नो, बोस, मलीन और और महीन चूहे को मार भरते मौत की बाट जोहते हुए पाया। अपने सी रवाना कर बोषित सचर पाने पर :
" तब निरोगता केवल एक स्थान है और रोगों की प्रासपातमा हेपीईजनहीं सकता। बापानी
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