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ये गम्भीर विरार युवक सिद्वार्थ को उसके स्थानों तक में बताते थे। एक दिन उसने सुना कि स्थान में कोई उस से बह रहा है कि " जे संसार पर प्रगट करना निश्चित कर चुका है उस का समय मा चुका है। जो स्वतन्त्र नहीं है वह दूसरों को स्वतन्त्र नहीं कर सकता। अन्धा अन्धों को मार्ग नहीं बलता सकता, जो रहार पा गया है वही दूसरों का उद्धार कर सकता है, जिस के प्रांखें हैं वह उन लोगों को मार्ग बता सकता है जो उसे नहीं जानते । सम लोगों को, चाहे वे कोई हो, जो सांसारिक शुष्मानों से नष्ट हो रहे हैं, अपने घरों से चिपटे हुए हैं और अपने घन, प्रात्मज और पत्री में रत रहते हैं उन्हें ठोर शिक्षा दे। और उन में ऐसी अच्छा उत्पमा करो जिथे संमार में समर करते हुए साधु सन्तों का पवित्र जीवन धारण करें।"
सी बीच में राजा शुद्धोदन को इन बातों का कुछ सन्देह हो गया । वह उन बातों को ताहने लगा वो उसके लाले पदय में उत्पन हो पर उस को बेचैन कर रही थी। उस समय राजा की ममता और चिन्ता दस गुनी बढ़ गई । उसने सिद्धार्थ के लिये तीन नये . महल बनवाये। एसबसन्त चतु के लिये, दूसरा गर्मियों
लिये और तीसरा जाह के लिये । राणा परतावा कि कही रामकुमार सांसारिक दुःखों से पबहा कर निकल मनाने इसलिये उसने अत्यन्त बड़ी मात्रा दे रस्ती चो, किम की प्रत्येक गति-मति पर दृष्टि रक्सी जाये। लेकिन यह सब होशियारी और जापानी विफल दुई । मिन की कमी भाशा न चो, जिन का कभी विचार
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