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( २० लिखा है कि "मन्त्र संहिता ही वेद है" ब्राह्मण वेद नहीं है बरन पाणिनि ने तो जहां मन्त्र और ब्राह्मण दोनों के लेने का प्रयोजन देखा स्पष्ट "छंदसि” कहा अर्थात् वेद में अर्थात् मन्त्र और ब्राह्मण दोनों में और जहां केवल मन्त्र वा बाह्मण का देखा “मन्त्रे” वा "बाह्मणे” कहा और जहां मन्त्र और बाह्मण अर्थात् वेद के सिवाय देखा वहां “भाषायाम” कहा भला जैमिनि महर्षि के पूर्व मीमांसा को तो स्वामी जी महाराज मानते हैं उस में इन सूत्रोंका अर्थ क्यों कर लगावेंगे "तच्चोदकेषु मन्त्राख्या" "शेषे बाह्मणशब्दः" (अ०२ पा० १ सू०३३) इस का अर्थ बहुत स्पष्ट है कि वेद का मन्त्रों से अवशिष्ट जो भाग सो ब्राह्मण निदान जब मैंने गौतम और कणाद के तर्क और न्याय से न अपने प्रश्न का प्रामाणिक उत्तर पाया और न स्वामी जी महाराज की वाक्य रचना का उस से कुछ सम्बन्ध देखा डरा कि कहीं स्वामी जी महाराज ने किसी मेम अथवा साहिब से कोई नया तर्क
और न्याय रूस अमरिका अथवा और किसी दूसरी विलायत का न सीख लिया हो फरंगिस्तान के विद्वज्जनमण्डलीभूषण काशिराजस्थापितपाठशाला. ध्यक्ष डाक्टर टीबो साहिब बहादुर को दिखलाया बहुत अचरज में आये और कहने लगे कि हम तो स्वामी जी महाराज को बड़ा पण्डित जानते थे पर
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