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(१८) ही स्वतः प्रमाण है आप का संहिता परतः प्रमाण होगा ( निवेदन पृष्ठ ८ ) "आप संहिता के मण्डन और बाह्मण के खण्डन का ऐसा प्रमाण दीजिये जिस से बाह्मण का मंडन और संहिता का खण्डन न होसके केवल आप के कहने से कोई कुछ क्यों मान लेगा” (नि० पृष्ठ ५) निदान भ्रमोच्छेदन की बाईसों पृष्ठे बाईस बार उलट डालीं इसके सिवाय उसमें और कुछ उत्तर नहीं पाया कि "देखिये राजाजी की मिथ्या आडम्बर युक्त लड़कपन की बात को जैसे कोई कहे कि जो पृथिवी और सूर्य ईश्वर के बनाये हैं तो घड़ा और दीप भी ईश्वर ने रचे हैं" और “जो सूर्य और दीप स्वतः प्रकाशमान हैं तो घटपटादि भी स्वतः प्रकाशमान हैं” (भ्र० पृष्ठ १२ और १३) भला सूर्य और घड़े की उपमा संहिता और ब्राह्मण में क्योंकर घट सकेगी उधर सूर्य के सामने कोई आध घंटे भी आंख खोल के देखता रहे अंधा नहीं तो चक्षु रोग से अवश्य पीड़ित होवे जेठ की धूप में नंगे शिर बैठे सन्निपाती नहीं तो ज्वरग्रस्त अवश्य होजावे यदि युत्तेजक काच सामने धर दे कपड़ा लत्ताही जल जावे जनम भर उछले कूदे कैसे ही बलून पर चढ़े कभी सूर्य तक न पहुंचे इधर कु. महार से यदि चाक डंडा और कछ मिट्टी लेग्रावे चाहे जितने घड़े आप अपने हाथ बना लेवे और फिर जब
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