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(१९) चाहे तोड़ डाले संहिता और ब्राह्मण दोनों ग्रन्थ हैं एक से काराज़ पर एक सी सियाही से लिखे हुए वा छपे हुए और एक से कपड़ों में बंधे हुए जब तक बतलाया न जावे जानना भी कठिन कि कौन संहिता है और कौन ब्राह्मण पर हां उस काल से लेकर कि जिससे पहले किसी को कछ विदित नहीं आजतक सब वैदिक हिन्दू अर्थात् जो हिन्दू वेद को मानते हैं संहिता और बाह्मण दोनोंको बराबर माननीय मानते चले आये स्वामीजी महाराज को अपने ही इस न्याय से कि "जो सैकड़ों प्राप्त ऋपियों को छोड़ कर एक ही को प्राप्त मान कर, संतुष्ट रहता है वह कभी विद्वान नहीं कहा जा सका" ( भ्र० पृष्ठ १५ ) ब्राह्मण का परित्याग न करना चाहिये आपस्तम्बादि मुनि प्रणीत सूत्रों के परिभाषा सूत्र में भी “ मंत्र बा. ह्मणयोर्वेद नामधेयम्" ऐसाही लिखा है और स्वामी जी महाराज नो यह कहते हैं कि "क्या आप जैसा कात्यायन को प्राप्त मानते हैं वैसा पाणिनि आदि ऋपियों को प्राप्त नहीं मानते +++ जो उन को भी प्राप्त मानते हो तो मंत्र संहिता ही वेद है उन के इस वचन को मान कर तबिरुद्ध बाह्मण को वेद सं. ज्ञा के प्रतिपादक वचन को क्यों नहीं छोड़ देते" (भ्र० पृष्ठ १५) सा पहल तो स्वामी जी महाराज यह बतलावें कि पाणिनि आदि ऋषियों ने कहां ऐसा
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