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दन रह गये । जब मानसिक अभ्यासे के पीछे शारीरिक व्यायामों का नम्बर जाया । सम्होंने अपने सब साथियों को कूदने, फांदने, तैरने, दौड़ने, धनुष खींचने और दूसरे कामेमेिं हरा दिया । इन बातों में उनकी जानकारी, शौर उनका अभ्यास पूर्वतः सिद्ध हुआ। उनके प्रतिद्वन्दियों में सनके दो चचेरे भाई भी थे। एक का नाम श्रानन्द था जे उनके बुद्धत्व पानेपर उनका एक बहुत बड़ा और पक्का भक्त शिष्य हुमा, और दूसरे का नाम देवदत्त था जो स्वयंवर में हार जाने के कारण बड़ा क्रोधित था, और अन्त में सिद्धार्थ का विकट शत्रु हो गया था । सिद्धार्थ को अपनी विजय का पारितोषिक सुन्दरी गोपा के रूप में मिला । गोपा भी जैसा अपने को समझती थी उसी योग्य पद पर पहुंच गई और युवराची पद से विभूषित हुई । उसने घर के लोगों के रोकने पर भी महल वालों के सामने अपना सुख ढांपना बन्द कर दिया । इस के लिये उसने प्रभाव दिया कि " वे थे। चम्र्मात्मा है, चाहे बैठे हों, बड़े हीं और फिरते है। बदा दर्शनीय हैं। एक मूल्यवान् दमदमाता हुआ हीरा कंडे की बेटी से और भी अधिक सम्बल दिखाई पड़ता है। जे। स्त्रिर्या अपने मन को अपने बशमें रखती हैं और जितेन्द्रिय हैं वे अपने पतिसे सन्तुष्ट रहती हैं, परपुरुष को तुच्छ समझती हैं और का विचार तक नहीं करतीं, उन्हें मुंह ढांपने शीर पर्दा डालने की कोई आवश्यकता नहीं है । वे तो सूर्य और चन्द्र के समान स्वयं सज्ज्वल हैं। श्रेष्ठ और पवित्रामा ऋषि, और दूसरे देवनय मो मेरे विचारों को जानते हैं, और मेरे चरित्र, धर्म, सत्य और नयता को खूब समझते ་་
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