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हैं तो फिर मुझे मुंह ढांपने की क्या आवश्यकता है ?
ऐसे प्रेम और ऐसी पवित्रता के साथ यद्यपि इस जोड़ी का जीवन सुख पूर्वक व्यतीत हो रहा था, तथापि सिद्धार्थने जिन विचारोंका पहलेही से निश्चय कर लिया था उन्हें वे न बदल सके । वे अपने विशाल महल में हर तरह के भोग विलास के सामानों से घिरे हुए थे, और आमोद प्रमोदकी किसी वस्तु की कमी न थी परन्तु जिस पवित्र जीवन का उन्होंने दृढ़ संकल्प किया था उसे वे किसी तरह भी नहीं छोड़ सकते थे । एक दिन उन्हें । ने अपने मन में बड़ी उदासीनता के साथ कहा, "यह सम्पूर्ण संसार बुढ़ापे और बीमारी के दुःखों से परिपूर्ण हो रहा है । मृत्यु की आग से निगला जारहा है और हर तरह के सहारेसे वञ्चित है । मनुष्य का जीवन श्राकाश में बिजली की चमक के समान है, जैसे एक झरना पहाड़ से नोचे झड़ा के के साथ बहता है उसी तरह यह जीवन विना किसी रोक टोक के बहुत जल्द चला जाता है । इतना जल्दी जाता है कि कोई रोक नहीं सकता I इस संसार में तृष्णा से और प्रज्ञान से जीव बुरे मार्गों में जा रहे हैं । जिस कुम्हार का चक्र बार बार घूमता है, उसी तरह अज्ञान पुरुष भ्रमते फिरते हैं । तृष्णा की प्रकृति, जे कि भय और दुःख से मिली हुई है, सब कष्टों की मूल है। इस से तलवारको तीक्ष्य चार सें मी अधिक डरना चाहिये और विषले वृत के पत्ते से अधिक भयङ्कर समझना चाहिये । यह दावा है, प्रतिष्धनि है, लहर है, स्वप्न के सदृश है, एक निस्सार शीर पोथी व तर के समान है, जादू जैसी धोखेबाज़ नहीं हुई है, पानी के बबूले के बराबर है ।
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