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मेरी कन्या का पाणिग्रहण करे, उसे सब प्रकार की विद्या में अपने को सिद्धहस्त प्रमाणित करना पड़ेगा।" उस ने कुछ क्रोध पूर्वक यह भी कहा कि “ राजकुमार महलों में बालस को गोद में खेलता है, परन्तु हमारी जाति का यह नियम है कि पुत्रियां केवल उन्हीं लोगों को दोजावें जो मर्दाना कामों में निपुण और अभ्यस्त हों, न कि सन को जो शस्त्र विद्या से अपरचित हों। इस कुमार ने कभी तलवार चलाना, मुष्टि प्रहार, धनुष की की प्रत्यञ्चा को चढ़ाना, मल विद्या, और युद्ध शाख नहीं सीखा है, तो फिर मैं कैसे एक ऐसे अयोग्य वर को अपनी प्यारी कन्या सौंप दूगा ?" ___ अब राजकुमार सिद्धार्थ उन गुणों के दिखाने को विवश हुए जो स्वयम्वर के लिये श्रावश्यक थे। स्वयंघर का यज्ञ प्रारम्भ हुआ । ५०० नवयुवा शाक्य वीर, जो शस्त्र संचालन में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके थे, एकत्रित हुए, और सुन्दर राजकुमारी जिसका नाम गोपा था जेता की अर्धाङ्गिनी होने की प्रतिज्ञा पर वहां उपस्थित हुई। राजकुमार सिद्धार्थ ने बहुत सुगमता से अपने को उन शायों से बढ़ा चढ़ा सिद्ध कर दिखाया । उसके प्रतिस्पर्धी मुंह बाए रह गये । यह स्वयस्वर की परीक्षा दण्डपाणि ने बहुत सी विद्यामों में ली थी। सिद्धार्थ ने लेखन विद्या, गणित, व्याकरण, तर्क, न्याय, और वेद शास्त्र में अपने प्रतियोगियों से तो सर्वोपरि प्रमाणित किया ही, किन्तु जितने वहां परीक्षा के परीक्षक थे सन से भी अपना पद कंचा सिद्ध कर दिया । वे अंपने परीक्षकों से भी अधिक विद्वान् और बड़े बड़ेथे, वे लोग इनकी विद्यायोग्यता देख
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