________________
पर प्यार करना स्वीकार किया कि " मेरे विवाह के लिये जो की ठोकको जावे, वह नीचहदया या अशुद्ध महो। यदि वर वैश्य या शूद्र कन्या भी होतो कुछ पर्ज नहीं। मैं उसे तमी प्रसन्नता के साथ ग्रास करूंगा जैसी ब्रालर या क्षत्रिय कन्या को । उस में मेरो इच्छानुमार गुरु अवश्य होने चाहिये।" सिद्धार्थ जिन जिन गुों को अपनी गाङ्गिमी में चाहते थे उनकी उन्होंने एक लम्बी सूची तय्यार की, और बद्ध पुरुषों के हाथों दी कि उन सोगेको मनचाही दुलहिन ढूंढने में सहायता मिले ।
अब राजपुरोहितने अपना काम प्रारंभ किया। वह घर उधर भावश्यक लड़की की खोज करने लगा। नवयुवतियों में से सिद्धार्थ के लिये योग्य जोड़ो ढूंढने लगा। सिद्धार्थ ने गुखों को जो सूची तय्यार की चो उस के अनुकल बोग्य कन्या का मिलना कठिन हो गया । अन्त में ए.कुमारी में पब अभिसषित गुण पाये गये । उसने पुरोहित ने सिद्धार्थ की पो होने की माना की। निदान वर गुत सी योग्य और सुन्दर सरियों के सच सिद्धार्थ के सामने बुलाने पर गई। पुष गौतम ने उसे पसन्द किया और शुद्धोदन ने भी
सम्बन्ध को स्वीकार कर लिया परन्तु इसकी का पिता, शास पराने का वा और जिस का नाम दरपालिका र सिलवार के विवाह सन्तुष्ट नहीं हुमा । पर सिद्धार्थको भानसी, निरुद्यमी,और एकान्त.
वो समझता का। उसका विचार पा कि गौतम में बाब मुखों को होता है. अधिवोषित पराकम का नाम है। बराहपाति ने स्पष्ट कर दिया, "पूर्व इस कि सिद्धार्थ
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com