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तीसरी तारीख, या जैसा कुछ अन्य कहते हैं, वैशाख की १५ वी को बालक सिद्वार्थ का जन्म हुमा । जिस समय सिद्धार्थ गर्भ में थे मायादेवी ने बड़े बड़े वृत किये थे, इस कारण वह बहुत निर्बल हो गई थी। ब्रालापंडितों ने यह भविष्य वाखो की चो, कि होने वाला बालक योगी होगा, और भिक्षा इत्यादि से जीवन निर्वाह करता हुश्रा मारा मारा फिरेगा। इस कारण उन का दिल टूट गया था। वह अपने बच्चे को माता को त्याग कर भीख मांगते हुए मारा मारा फिरते हुए नहीं देख समतीची। मकारों से सिद्धार्थ को जन्म देने के सात दिन बाद वा परलोकवासिनी हुई। माताहीन बच्चा मायादेवी की बहिन और सोत प्रजापति गौतमी के सुपुर्दमा। यह प्रजापति गौतमी सिद्धार्थ के बुद्ध होने पर उस के बड़े से बड़े मक शिष्यों में से एक थीं।
बालकपनी माता दूध ही सुन्दर पा,और बालम परिणत असित ने, जो पुराने देवमन्दिर में लेजाने के उत्तम पर नियुक्त पा, कहा, कि उस के चक्रवर्ती होने के ३२ मुख्य सा , और ८० दूसरे। कुछ है, सिद्धार्थ पावर्ती राजा नही तो चक्रवर्ती धर्माचार्य हुए। जब बापाठशाला भेजे गये, उगों ने अपने गुरुजनों से भी अधिक प्रतिभा दिखाई । उनमें से एक का नाम विवामित्र पा, सिद्धार्थ उसी की शिक्षा में अधिक रसे गये थे, उस ने कुछ दिन पीले कर दिया कि मेरे पास और अधिक कुछ मी सिखाने को नही अपनी उम वाले सहपाठियों के साथ यह बाल्यावस्था में सेल कद में भाग नहीं लेते थे; उस समय भी वे सच्चतर
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