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विचारों में मम दिखाई पड़ते थे । मनन करने के लिये वह प्रायः अलग रह कर एकान्त सेवन करते थे । एक दिन जब वे अपने साथियों के साथ ग्राम्यक्षेत्र देखने गये तो अकेले एक जंगल में घमते फिरते चले गये। वहां वे कई घंटे रहे । कोई नहीं जान सका, कि कहां गये। शुद्धोदन बड़े चिन्तित हुए, और स्वयं ढूंढने को निकले । उन्हों ने सिद्धार्थ को जंगल में जम्ब वृक्ष की छाया में ध्यान में अत्यन्त निमग्न पाया।
अब युवक राजकुमार के विवाह का समय निकट श्रा पहुंचा। शाक्य लोगों में से वृद्ध पुरुष को ब्राह्मण पहितों की यह भविष्य वाणी खूब याद थी कि राजमुकुटकी अपेक्षा सिद्धार्थ योग भस्म अधिक पसन्द करेगा। इस कारण उन लोगों ने राजवंश की वृद्धि के लिये राजकुमार के शीघ्र ही ब्याह करने की प्रार्थना की । विवार से नवयुवक को सिंहासन से चपेटने को उन्हें प्राशा थी। राजा सिद्धार्थ के विचारों से सब जानकारी रखते थे। वे स्वयं उन से इस बात के बेड़ने का साहस न कर सके। उन्हें ने वृद्ध पुरुषों को बात चीत करने के लिये कहा । सिद्धार्थ मे, जोकि इन्द्रिय के बुरे प्रभावों से विष, अग्नि बा तलवार की अपेक्षा अधिक डरते थे, रोपने विचार के लिये सात दिन का समय चाहा । सब मोचने पर प्रार्थना स्वीकार की। उन्होंने विचार लिया कि पूर्व ऋषियाने मी व्याह किये हैं, और उन के बारव में रुकावट नहीं डाल सका तो यह मेरे शान्त मध्ययन, ध्यान और मनन नी बिन नहीं डाल सकता।" इस तरह सोच विचार करने के बाद उन्होंने एक शर्त
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