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( २७ ) इस के संवत् १९२६ में यहां दुर्गाजी पर आनन्दबारा में श्रीमन्महाराजाधिराज द्विजराज श्री ५ का. शीनरेश महाराज प्रभृति प्रायः सब काशी के मान्य प्रतिष्ठित और विद्वज्जनों के समाज में जो कुछ शास्वार्थ हुवा था उसी को उक्त स्वामीजी नहीं मानते तो अब आगे उन से क्या प्राशा है" ॥
निदान स्वामीजी महाराज से तो अब काशी के पंडित लोग फिर शास्त्रार्थ करते नहीं दिखलायी देते किन्तु स्वामीजी महाराज यदि अपने किसी गुरु को आगे खड़ा करके शास्त्रार्थ करना चाहें तो क्या प्राश्चर्य है कि फिर भी यहां के पंडित लोग बद्धपरिकर हो जावें हां बाबू रामकृष्णजी ने जो प्रबोध निवारण ग्रंथ छपवाया है ऐसे ऐसे ग्रंथ स्वामीजी महाराज अपना जी बहलाने को चाहे जितने ले लेवें।
॥ इति ॥
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