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सत्यार्थ प्रकाशा से सुमाले सो यहां भी कुछ लिख नि हैं क्योंकि इस बिवाह कारज के सूमकी बड़ी आवश्यकता है जो इसमें ब्याख्या बदे भीनो चिन्तानहीं अथ बिवाह की सूम अथ विद्या अनुकूल वेदानधीत्य वेदौवा वेदंवापि यथाक्रमम् अविश्रुतवस चर्ये महस्थाश्रम माविशेत्र यह मनु महाराज के धर्म शास्त्र का बचनहै इसका अर्थ यह है कि जययथावत ब्रह्मचर्य प्राचार्यानु कूल वर्ज कर धर्म से चारों तीन वा दो अथवा एक वेदको साङ्गोपाङ्ग पढ़के जिसका ब्रह्मचर्य खंडित | नहुवा हो वह पुरुष वा स्त्रीग्रहा श्रममें प्रवेश करें मनुः॥ तंप्रतीतं स्वधर्मेण ब्रह्मदाय हरं पितुः
खम्बिरंग नव्य प्रासीने महयत्प्रथमं गवा २ यहभी मनुका बचन है इसका अर्थ है कि जोस्वधर्म अर्थात् यथा वन-प्राचार्य और शिष्यका धर्म है उस से युक्त पिता जनक वा प्रध्यापक से ब्रह्म दाय-अ अर्थात् बिद्यारूपभागका ग्रहणा और माला का धार सा करने वाला अपने पलंग पर बैठे हुए प्राचार्य को प्रथम गोदान से सत्कार ऐसे लक्षण युक्तवि द्याथी को भी कन्या का पिता गोदान से सत्कार करे
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